आज षष्ठी तिथि पर ऐसे करें पितर तर्पण, बरसेगी पूर्वजों की कृपा

punjabkesari.in Tuesday, Sep 08, 2020 - 12:36 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अश्विनी मास के कृष्ण मास की षष्ठी तिथि को षष्ठी तिथि का श्राद्ध संपन्न किया जाएगा। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाना बेहद जरूरी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग अपने मृत हो चुके व्यक्ति का श्राद्ध नहीं करते, उनके परिजन की आत्मा को कभी मुक्ति नहीं मिलती। धार्मिक शास्त्रों में 15 दिन पड़ने वाले इस पितृ पक्ष के प्रत्येक दिन व तिथि के बारे में बताया गया है कि किस दिन किसका श्राद्ध करना चाहिए। षष्ठी तिथि के बारे में कहा जाता है कि इस दिन केवल उन्हीं ही लोगों का श्राद्ध, पिंडदान व पितर तर्पण करना चाहिए जिनकी मृत्यु इस तिथि को हुई हो। आइए जानते हैं क्या है इस तिथि के श्राद्ध की विधि तथा इससे जुड़े कु उपाय।  
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श्राद्ध विधि : 
श्राद्ध वाले दिन प्रात: दिन प्रातः उठकर स्नान कर देव स्थान पर तथा जहां पितृ तर्पण करना हो उस स्थान को गंगाजल से पवित्र करें।
घर की महिलाएं इसके बाद स्नान करके पितरों के लिए भोजन बनाएं।

ब्राहम्ण को घर पर बुलाकर या मंदिर में पितरों की पूजा व तर्पण का कार्य विधिवत करवाएं। तथा पितरों के समक्ष अग्नि में गाय का दूध, दही, घी और खीर अर्पित करें। 

अब पितरों के लिए बनाए गए भोजन के 4 ग्रास निकालें जिसमें एक हिस्सा गाय, दूसरा कुत्ते, तीसरा कौए और चौथा अतिथि के लिए रखें। 
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गाय, कुत्ते और कौए को खाना डालने के बाद किसी ब्राहम्ण को आदरपूर्वक भोजन करवाकर उन्हें वस्त्र तथा दान-दक्षिणा दें। 

अगर कोई ब्राहम्ण इसके लिए उपस्थित हो तो ये कार्य दामाद या भतीजा भी कर सकते हैं। साथ हा बता दें कि अगर कोई व्यक्ति किसी कारण श्राद्ध कर पाने में सक्षम न हो तो उसे पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए। इससे भी श्राद्ध कपक्ष का संपूर्ण फल मिलता है। 


हनुमान चालीसा का पाठ करें इससे पितृ प्रसन्न होते हैं। गीता का सातवां अध्याय या मार्कण्डेय पुराणांतर्गत पितृ स्तुति करें। ऐसी मान्यता है कि इससे पितृ खुश होते हैं। 

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Content Writer

Jyoti

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