इस नवरात्रि पर तीनों गुणों से पार हो जाएं: गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

punjabkesari.in Tuesday, Oct 17, 2023 - 07:35 AM (IST)

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Shardiya Navratri 2023: नवरात्रि के नौ दिन आनंद लेने और तीन मौलिक गुणों, जिनसे ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है उनसे पार हो जाने का अद्भुत अवसर है। यद्यपि, हमारे जीवन में तीन गुण प्रधान हैं लेकिन हम कभी न इन पर ध्यान देते हैं और न ही इन पर मनन करते हैं। इन तीन मौलिक गुणों को शक्ति या इस सृष्टि में मातृत्व शक्ति का अंश माना गया है। जब हम नवरात्रि में मां शक्ति की पूजा करते हैं, तब हम इन तीन गुणों में सामंजस्य की स्थापना करते हैं और वातावरण में सत्व गुण को बढ़ाते हैं।

PunjabKesari Shardiya Navratri Gurudev Sri Sri Ravi Shankar

नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण को समर्पित होते हैं, जो अस्तित्व का गहरा, घना और भारी पक्ष है। अगले तीन दिन रजोगुण को समर्पित होते हैं जो क्रियाशीलता या बेचैनी को दर्शाते हैं। अंतिम तीन दिन सतोगुण या शुद्धि को समर्पित होते हैं। हमारी चेतना तमोगुण और रजोगुण से होती हुई अंतिम तीन दिनों में सतोगुण में खिल जाती है। हम इन नौ दिन और नौ रातों में उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के द्वारा अपने वास्तविक स्रोत तक पहुंचते हैं। जो प्रेम, आनंद और शांति है। जब भी जीवन में सतोगुण प्रभावी होता है, विजय निश्चित रूप से होती है। दसवें दिन इस ज्ञान के सार का सम्मान करते हुए विजयादशमी का उत्सव मनाया जाता है।

इन नौ दिनों में देवी मां के तीन रूपों की पूजा के द्वारा हम तीनों गुणों से पार हो जाते हैं। सबसे पहले देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है, जिनकी प्रार्थना से मन की अशुद्धियां मिट जाती हैं। इस प्रकार से हम मन की प्रवृत्तियों जैसे- राग, द्वेष, अहंकार और लालच पर विजय प्राप्त करने लगते हैं। जब हम इन नकारात्मक प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, तब हम अपने में सकारात्मक गुणों को पोषित और दृढ़ बनाते हुए आध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ते हैं। अपने हृदय और मन में इन आदर्श मूल्यों और गुणों को पोषित करने के लिए मां लक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है और अंतिम तीन दिनों में जब सतोगुण उच्च स्तर पर होता है, तब आत्मा का सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त करने के लिए मां सरस्वती की विविध रूपों में पूजा की जाती है।

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Expression of gratitude through offering अर्पण के द्वारा कृतज्ञता की अभिव्यक्ति
इन पवित्र दिनों में देवी मां को फूल और फल अर्पित किए जाते हैं लेकिन फूल वास्तव में इस बात का प्रतीक हैं कि मनुष्य की चेतना खिली हुई है। हम कौन हैं- हम पूर्ण, आकर्षक, बहुत हल्के और सुंदर हैं। फल पूर्णता का प्रतीक हैं। एक पौधे के जीवन चक्र में फल पूर्णता को दर्शाते हैं। जब हम देवी मां को पूर्ण कृतज्ञता के साथ प्रसाद के रूप में फल अर्पित करते हैं, तब हमें पूर्णता का अनुभव होता है। हम दीया भी जलाते हैं। भारतीय परम्परा में हम लंबे पीतल के दीये जलाते हैं, जिनके ऊपर हंस बना होता है। इसका बहुत सुन्दर अर्थ है।

एक संस्कृत श्लोक के अनुसार हंस को "नीराक्शिराविवेक " का वरदान प्राप्त है। इसका अर्थ है कि यदि दूध और पानी को मिला दिया जाए तब भी हंस उन्हें अलग करके पी सकता है।

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Beauty of sacrifices यज्ञों का सौंदर्य
इन नौ दिनों में यज्ञों के दौरान प्राचीन संस्कृत मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जो चेतना का शुद्धिकरण और उत्थान करते हैं। इस मंत्रोच्चारण में हम मंत्रों की तरंगों से एकाकार हो जाते हैं। मंत्रों का अर्थ शब्दों से कहीं अधिक है। नवरात्रि में होने वाले यज्ञों में हो रहे संस्कृत मंत्रोच्चारण को पूर्ण रूप से समझने के बजाय हमें मंत्रोच्चारण द्वारा निर्मित ध्यानस्थ, सकारात्मक और शुभ वातावरण में डूब जाना चाहिए। जब यज्ञों को बहुत शुद्धता और भक्ति के साथ किया जाता है, तब सभी को सांसारिक दुख और पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है एवं शांति, शक्ति, समृद्धि, सफलता और श्रद्धा की प्राप्ति होती है। जो अपने आप में सर्वश्रेष्ठ आशीर्वाद है।

नौवें दिन हम यज्ञ में अर्पण के द्वारा उस सब कुछ का सम्मान करते हैं, जो हमें प्राप्त हुआ है। चाहे वह बड़ी से बड़ी उपलब्धि हो या फिर कोई छोटी सी चीज ही क्यों न हो। संपूर्ण सृष्टि सजीव हो उठती है और हम हर चीज में देवी मां की तरंग को देखने लगते हैं। बिल्कुल वैसे ही, जैसे कि एक बच्चा हर चीज़ में जीवन को देखता है। देवी मां या परम शुद्ध चेतना जो सर्वव्यापी है, समस्त सृष्टि पर अपने आशीर्वाद की वर्षा करती हैं।

हर रूप और हर नाम में एक ही दिव्यता को देखना ही नवरात्रि का उत्सव मनाना है। दसवां दिन विजयादशमी या विजय का दिवस है। यह विजय का सम्मान करने का दिन है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय का दिवस है लेकिन यह दृष्टिकोण सीमित है। वेदांत के दृष्टिकोण से यह द्वैत पर वास्तविकता की विजय है।

महर्षि अष्टावक्र ने कहा है, " यह एक मासूम सी लहर है, जो अपने आप को सागर से अलग समझती है। लेकिन अलग हो नहीं पाती है। "

 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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