...तो इस वजह से पड़ गया था शनिदेव का रंग काला

punjabkesari.in Wednesday, Jun 09, 2021 - 04:16 PM (IST)

हिंदू पंचांग के अनुसार कल यानी 10 जून को शनि जयंती का पर्व मनाया जाएगा। इसके साथ ही कल साल का पहला सूर्य ग्रहण और वट सावित्री व्रत रखा जाएगा। शास्त्रों में शनिदेव के बारे में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। आप में से बहुत से लोगों से उनके जन्म से जुड़ी कथा के बारे में सुना होगा, लेकिन ऐसे भी लोग हैं, जो उनके जन्म के बारे में नहीं जानते हैं। आज हम आपको शनिदेव के जन्म से जुड़ी ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। 
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एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है। लेकिन स्कंदपुराण के काशीखंड अनुसार शनि के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं लेकिन इसके पीछे एक कहानी है। राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान रहती थी तो वह सूर्य देव की अग्नि को कम करने का सोचने लगी। दिन बीतते गए और संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नामक तीन संतानों को जन्म लिया। फिर संज्ञा ने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को किसी भी तरह से कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे इसके लिए उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी ही तरह की एक महिला को पैदा किया और उसका नाम संवर्णा रखा। यह संज्ञा की छाया की तरह थी इसलिए इनका नाम छाया भी हुआ। संज्ञा ने छाया से कहा कि अब से मेरे बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिए।
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यह कहकर संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पंहुची तो पिता ने कहा कि ये तुमने अच्‍छा नहीं किया तुम पुन: अपने पति के पास जाओ। जब पिता ने शरण नहीं दी तो संज्ञा वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण करके तपस्या में लीन हो गई। उधर सूर्यदेव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं संवर्णा है। संवर्णा अपने नारीधर्म का पालन करती रही और छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के संयोग से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया। कहते हैं कि जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या किया था। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानि शनिदेव पर भी पड़ा। फिर जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
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मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी तब कहीं उन्हें फिर से अपना असली रूप वापिस मिला। लेकिन इस घटना के चलते पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।

 


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Lata

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