शिव जी ही नहीं, सावन में मिलती है श्री कृष्ण की कृपा, पर कैसे? जानिए यहां
punjabkesari.in Friday, Jul 24, 2020 - 12:43 PM (IST)
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श्रावण मास में भगवान शंकर तथा देवी पार्वती की पूजा करने का विधान है। कहा जाता है इस मास में इनकी आराधना से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। खासतौर पर जिन युवा-युवती की शादी होने में बाधाएं रही होती हैं या जिन मैरिड कपल्स के जीवन में किसी प्रकार की परेशानियां उनके रिश्तेको खराब कर रही हो तो ऐसे में उन्हें इनकी आराधना से काफी लाभ प्राप्त होता है। अब ये तो हुई श्रावण माह में होने वाली शिव जी पूजा की खासियत की। अब बताते हैं इस दौरान की जाने वाली भगवान श्री कृष्ण की पूजा के बारे में। जी हां, क्या आप नहीं जानते हैं कि श्रावण मास में भगवान शंकर के अलावा श्री कृष्ण की पूजा का भी अधिक महत्व है। अगर नहीं, तो आइए अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको बता देते हैं कि इनके पूजन के बारे में, साथ ही बताएंगे श्रावण में राशि अनुसार इनक किन मंत्रों के जप से अधिक लाभ प्राप्त होता है।
सबसे पहले जान लें कि श्रीकृष्ण की पूजा कैसे करनी चाहिए-
गुरुवार और गुरु ग्रह से श्री कृष्ण का गहरा संबंध माना जाता है, इसलिए इनकी पूजा करने से पहले इन्हें अपने घर में गुरु के रूप में स्थापित करें, दोनों वेला यानि सुबह-शाम इन्हें पीले फल, फूल और तुलसी दल अर्पित करें। साथ ही साथ पहले श्री कृष्ण की प्रतिमा को और फिर बाद में स्वयं को प्रसाद के रूप में चंदन का तिलक लगाएं। जितनी देर संभव हो हरि कीर्तन करें। इसके अलावा "कृष्ण कृष्ण" के नाम का जाप भी कर सकते हैं। कोशिश करें कि इस दौरान यानि श्रावण के पूरे मास में पूर्ण रूप से सात्विक भोजन करें।
यहां जानिए अपनी राशि अनुसार श्री कृष्ण के मंत्र-
मेष- ॐ सुखिने नम:।
वृषभ- ॐ प्रशांताय नम:।
मिथुन- ॐ भुवराय नम:।
कर्क- ॐ अच्युताय नम:।
सिंह- ॐ रमेशाय नम:।
कन्या- ॐ शुभांगाय नम:।
तुला- ॐ योगमायिने नम:।
वृश्चिक- ॐ यदवे नम:।
धनु- ॐ ब्रजे नंदपुत्राय नम:।
मकर- ॐ सुजानवे नम:।
कुंभ- ॐ गर्गदिष्टाय नम:।
मीन- ॐ पुराणाय नम:।
अगर बात करें को इनकी पूजा का लाभ बताते हुए श्री शुकदेवजी राजा परीक्षित से कहते हैं-
सकृन्मनः कृष्णापदारविन्दयोर्निवेशितं तद्गुणरागि यैरिह।
न ते यमं पाशभृतश्च तद्भटान् स्वप्नेऽपि पश्यन्ति हि चीर्णनिष्कृताः
जिसका अर्थ है कि जो मनुष्य अपने जीवन में केवल एक बार श्रीकृष्ण के गुणों में प्रेम करने वाले अपने चित्त को श्रीकृष्ण के चरण कमलों में लगा देते हैं, वे अपने पापों से छूट जाता है, जिसके बाद स्वप्न में भी जातक को पाश हाथ में लिए हुए यमदूतों के दर्शन नहीं होते।