प्रेेरक प्रसंग: बुराई को जड़ से खत्म कर सकती अच्छाई

punjabkesari.in Tuesday, Apr 13, 2021 - 01:33 PM (IST)

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एक गुरु तथा शिष्य तीर्थाटन को जा रहे थे। चलते-चलते संध्या हो गई तब रात्रि विश्राम के लिए दोनों एक वृक्ष के नीचे रुक गए। ज्यों ही गुरु जी की नींद पूरी हुई वे दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पूजा-पाठ में लग गए। इसी बीच उन्होंने एक विषधर सर्प को अपने शिष्य की ओर जाते देखा।

शिष्य गहरी नींद में था। गुरु पशुृ-पक्षियों की भाषा समझते थे। उन्होंने सर्प से प्रश्न किया-‘‘सोए हुए शिष्य की ओर जाने का उसका क्या प्रयोजन है?’’ 

सर्प रुक गया और बोला, ‘‘महात्मन्। आपके शिष्य से मुझे बदला लेना है। पूर्व जन्म में इसने मेरी हत्या कर दी थी। अकाल मृत्यु होने से मुझे यह सर्प योनि मिली है, अत: मैं आपके शिष्य को डसना चाहता हूं।’’

एक क्षण विचार कर गुरु जी ने कहा, ‘‘भाई! मेरा शिष्य बहुत ही सदाचारी एवं होनहार है। वह एक अच्छा साधक है। उसे काट लेने पर भी तुम्हें मुक्ति नहीं मिलेगी।’’ 

गुरु जी के समझाने पर भी सर्प ने अपना निश्चय नहीं बदला। तब गुरु जी ने एक प्रस्ताव सर्प के सामने रखा और कहा, ‘‘देखो भाई। मेरे शिष्य की साधना अभी पूरी नहीं हुई है। उसे अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना है। इसके विपरीत मुझे अब कुछ करना नहीं है। मेरा जीवन भी अब अधिक नहीं है। मेरे नाश से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए हे सर्पराज। आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे शिष्य के स्थान पर मुझे डस लो। इसके लिए मैं सहर्ष तैयार हूं।’’

कहते हैं गुरु जी के इस प्रकार के परोपकारी वचन सुनकर सर्प का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने शिष्य को काटने का विचार छोड़ दिया और गुरुदेव को प्रणाम कर वहां से चला गया।


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Content Writer

Jyoti

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