रामचरित मानस: जानें, किसके भक्त हैं श्री राम
punjabkesari.in Monday, Feb 17, 2020 - 09:34 AM (IST)
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महाशिवरात्रि पर्व ज्ञान के प्राकट्य एवं कल्याण के उद्भव का पर्व है। संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ‘रामचरित मानस’ में लिखते हैं : ‘भवानी शंकरी वेदे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ। याश्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त: स्थमीश्वरम्।’’
अर्थात- मैं श्रद्धा और विकास के प्रतिरूप भगवान भवानी शंकर की वंदना करता हूं, जिनकी कृपा के बगैर सिद्धों, ऋषियों, मुनियों को हृदय में ईश्वर के दर्शन नहीं होते। श्री राम स्वयं कहते हैं कि भगवान शिव की कृपा के बिना मेरी प्राप्ति संभव नहीं है।
बड़े से बड़े पाप को नष्ट करने वाले महाध्यान परायण भगवान शिव अखंड समाधि में स्थित रहते हैं। अपने पिछले जन्म में काकभुषुंडि जी द्वारा अपने गुरु का अपमान किए जाने पर जब भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्हें भयानक श्राप देने लगे, तब गुरु द्वारा अपने शिष्य को क्षमा प्रदान करने के लिए भगवान शिव की स्तुति करने पर भोलेनाथ प्रसन्न हुए। उन्होंने न केवल उन ब्राह्मण को अपनी भक्ति प्रदान की अपितु उनके शिष्य को अबाध जन्म-मृत्यु का आशीर्वाद दिया तथा उसे श्री राम की भक्ति प्रदान की। उस ब्राह्मण द्वारा भगवान शिव की जो स्तुति की गई, वह जगत प्रसिद्ध है :
‘नमामीशमीशान निर्वाण रूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद-स्वरूपं।’’
अर्थात भगवान शिव मुक्ति स्वरूप, सर्वव्यापक, साक्षात ब्रह्म तथा वेद स्वरूप हैं। हम उनकी आराधना करते हैं। यह स्तुति हमें रामचरितमानस के उत्तरकांड में प्राप्त होती है। अष्टादश पुराणों, वेदों,स्मृतियों में भगवान शिव की महिमा का वर्णन प्राप्त होता है जिनकी कृपा से काकभुषुंडि जी रामायण के श्रेष्ठ वक्ता बने।
‘‘ॐ नम:शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम:शिवाय च शिवतराय च।’’
अर्थात भगवान शिव कल्याण एवं सुख के प्रदाता एवं मूल स्रोत हैं। वह महादेव उमापति सब शरीरों में जीव रूप से प्रविष्ट हैं, वे आदिकारण परमात्मा, सर्वव्यापक, अजन्मा, नित्य तथा कल्याण स्वरूप हैं, उन मंगलस्वरूप मंगलमयता की मूर्ति भगवान शिव को नमस्कार है।