Ram Navami 2022: जब हुआ भगवान श्री राम का जन्म...

punjabkesari.in Tuesday, Apr 05, 2022 - 12:00 PM (IST)

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Ram Navami 2022: चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि भगवान श्री राम अपने प्रिय अभिजीत मुहूर्त में अयोध्या के राज भवन में पिता दशरथ तथा माता कौशल्या के पुत्र के रूप में प्रकट हुए। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न अधिक धूप थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। उस समय योग, लगन, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए क्योंकि श्री राम का जन्म सुख का मूल है।

तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं : 
दीनों पर दया करने वाले, कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले, उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गईं। 

नेत्रों को आनंद देने वाले मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने दिव्य आयुध धारण किए हुए थे, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले प्रभु श्री राम चंद्र जी प्रकट हुए।

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माता सती से भगवान शिव कहते हैं कि ज्ञानी मुनि, योगी और सिद्ध निरंतर निर्मल चित्त से जिनका ध्यान करते हैं तथा वेद, पुराण और शास्त्र नेति-नेति कहकर जिनकी कीर्ति गाते हैं, उन्हीं सर्वव्यापक, समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, मायापति, नित्य परम स्वतंत्र, ब्रह्म रूप भगवान श्री राम ने अपने भक्तों के हितों के लिए अपनी इच्छा से रघुकुल के मणिरूप में अवतार लिया है।

अवतरण का मुख्य प्रयोजन 
अपने आचरण से श्रेष्ठतम मानव का आदर्श उपस्थित करके मनुष्यों को श्रेष्ठ सेवा धर्म की शिक्षा प्रदान करना और उसी के अनुसार  उन्हें कर्तव्य का बोध कराना ही भगवान श्रीराम के धरती पर अवतरण का मुख्य प्रयोजन है।   
        
श्रीमन्नारायण स्वरूप भगवान श्रीराम ने मानव रूप में अवतार लेकर माता-पिता के वचन पालन, सत्य वचन पालन, शरणागत वत्सलता, प्रजा पालन, धर्म, मर्यादा, सेवा, सदाचार के आचरण से जो शिक्षा दी है, वह सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अनुकरणीय है।
उनके द्वारा जो मर्यादा के मापदंड स्थापित किए वे शास्त्र मर्यादा बन गए और भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। 

श्रीरामचरित मानस के एक प्रसंग में भगवान श्रीराम भरत जी से कहते हैं कि मैं तुम्हें समस्त पुराणों और वेदों का निश्चित सिद्धांत बताता हूं कि दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं और दूसरों को दुख पहुंचाने के समान कोई पाप नहीं।

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वाल्मीकि रामायण में वह सीता जी को माता-पिता की सेवा का महत्व बताते हुए कहते हैं कि इनकी आराधना करने से धर्म, अर्थ और काम तीनों प्राप्त होते हैं और मनुष्य श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त करता है।

राम राज्य का वर्णन
तुलसीदास जी रामचरितमानस में राम राज्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि राम राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति तथा मर्यादा में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं।

 न कोई दरिद्र है, न दु:खी है और न दीन ही है। न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है।

मुनि जिन्हें ध्यान, ज्ञान, वैराग्य और योग आदि अनेक साधन करके पाते हैं, अपनी अनुपम भक्ति के बल पर रघुनाथ जी के परम भक्त शबरी तथा जटायु आदि ने उन्हें सहज ही प्राप्त कर लिया। 

लंका से जब हनुमान जी सीता जी की खोज करके वापस आए तो रघुवीर बोले- हे हनुमान ! तुम्हारे समान मेरा उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है। मैं तुम्हारा ऋण कभी नहीं चुका सकता। 

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श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ कोटि विस्तार वाला है। उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है। 

तुलसीदास जी कहते हैं : वह पुण्यात्मा पुरुष धन्य हैं जो वेद रूपी समुद्र के मथने से उत्पन्न हुए कलियुग के कलुष को सर्वथा नष्ट कर देने वाले, अविनाशी, भगवान श्री शंभु के सुंदर एवं श्रेष्ठ मुख रूपी चंद्रमा में सदा शोभायमान, जन्म-मरण रूपी रोग के औषध, सबको सुख देने वाले और श्री जानकी जी के जीवन स्वरूप श्री राम नाम रूपी अमृत का निरंतर पान करते रहते हैं।


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Content Writer

Niyati Bhandari

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