श्रीराम मंदिर आंदोलन के ''प्रणेता'' याद आते हैं

punjabkesari.in Monday, Nov 11, 2019 - 09:45 AM (IST)

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हम हिन्दुओं के सदियों पुराने जख्मों पर मरहम लगा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर उन हजारों संतों व भक्तों को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि, जिन्होंने पिछली सदियों में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान किया। उल्लास के इस अवसर पर राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए इस वर्तमान आंदोलन को शुरू करने में तीन प्रमुख हस्तियों के योगदान को विशेष रूप से याद करना आवश्यक है। इस कतार में सबसे आगे खड़े हैं: स्वर्गीय दाऊ दयाल खन्ना, जो मुरादाबाद से लम्बे समय तक विधायक और चन्द्रभान गुप्ता की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे। उन्होंने सबसे पहले 1983 में एक विस्तृत ताॢकक आलेख  तैयार करके तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को प्रस्तुत किया। जिसमें अयोध्या, काशी और मथुरा को अवैध रूप से बनी मस्जिदों से मुक्त करके भव्य मंदिर बनाने के लिए हिन्दू समाज को सौंपे जाने की मांग की थी। इंदिरा गांधी ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। तब खन्ना ने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति समिति बना कर इस आंदोलन की शुरूआत 1983 में की और अपने जीवन के अंत तक  कांग्रेसी रहते हुए ही इस आंदोलन से जुड़े रहे। जल्दी ही विहिप और बाद में भाजपा और संघ भी इस आंदोलन से पूरी ऊर्जा के साथ जुड़ गए।
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स्वामी वामदेव का योगदान
दूसरे महान व्यक्ति जिनके ऐतिहासिक योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, वह थे  प्रात: स्मरणीय विरक्त संत व राम जन्मभूमि मुक्ति समिति के  मार्गदर्शक मंडल के अध्यक्ष श्रद्धेय स्वामी वामदेव महाराज, जिन्होंने साधुओं की अपनी विशाल विरक्त मंडली के साथ पूरे भारत के कोने-कोने में जाकर सभी साधु-संतों को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन से जोडऩे का ऐतिहासिक कार्य किया। उनके संदर्भ में एक हृदय विदारक घटना का उल्लेख करना चाहूंगा जिसकी जानकारी देश में दो चार संतों के अलावा किसी को नहीं है।

जब 30 अक्तूबर 1990 को कार सेवा करने बड़ी श्रद्धा से देश के कोने कोने से अयोध्या पहुंचे लाखों निहत्थे कारसेवकों पर पुलिस ने फायरिंग करके सैंकड़ों को शहीद कर दिया था तो उस भयानक रात अयोध्या में मौत का सन्नाटा था। गलियों में जहां तहां भक्तों के शव बिखरे पड़े थे। ऐसे आतंक के माहौल में आंदोलन के सभी नेता जहां तहां छिपे थे। पर एक देवता जो सारी रात अकेला उन लाशों के बीच लाठी लेकर घूमता रहा, वे थे बूढ़े, अशक्त और अस्वस्थ श्रद्धेय स्वामी वामदेव महाराज। ब्रह्ममुहूर्त में जब वे आश्रम में नहीं दिखे तो घबराहट में साथ के साधुओं ने उनको खोजना शुरू किया। तो स्वामी जी गली में लाठी लिए खड़े मिले। चौंककर सबने पूछा महाराज! आप यहां क्या कर रहे हैं उनका उत्तर सुनकर निश्चय ही आपके  नेत्र सजल हो जाएंगे। वे बोले ऐ भगवान!  मैं रात भर इन शहीदों के शवों की रक्षा करता रहा, जिससे गली के कुत्ते इन भक्तों के पवित्र शवों को अपना ग्रास न बना सकें।
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तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने स्वामी वामदेव से तब कहा था, आप विहिप को छोड़ दीजिए, मैं कल ही आपको राम जन्मभूमि दे दूंगा! स्वामी जी ने कहा, ''आप लोकसभा में आज यह घोषणा कीजिए, मैं  कल ही विहिप छोड़ दूंगा।

नरसिम्हाराव का प्रस्ताव
नरसिम्हाराव जी ने एक बार उनसे कहा आप सुरक्षा गार्ड ले लें। स्वामी जी बोले, ''गर्भ में जिसने परीक्षित की रक्षा की थी, वह ही मेरा रक्षक है। अयोध्या में ढांचा गिरने के बाद वे सीधे हरिद्वार आए, उनका कमरा तैयार नहीं था तो वे मौनी बाबा के तख्त  पर ही लेट गए। बाबा ने पूछा महाराज, ''आपका काम अधूरा रह गया । मंदिर कब बनेगा। स्वामी वामदेव जी का उत्तर था, मेरे तीन संकल्प थे। 
1. जन्मभूमि से पराधीनता का चिन्ह मिटे।  
2. भगवा वस्त्रधारी और श्वेत वस्त्रधारी संप्रदाय के भेद को भूलकर एक मंच पर आ जाएं। 
3. देश  का हिन्दू जाग जाए। राम कृपा  से तीनों संकल्प पूरे हुए। अब मंदिर कब बनेगा यह रामलला जाने। रामलला ने यह भी पूरा कर दिया। स्वामी वामदेव जी का चित्र व कार सेवकों के हुए नरसंहार की टी.वी. रिपोर्ट हमने 1990 में अयोध्या में बनाई थी।
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राम मंदिर के लिए लड़ते रहे अशोक सिंघल
इस क्रम में तीसरा नाम श्री अशोक सिंघल जी का है। जो श्री दाऊ दयाल खन्ना जी से मिलने मुरादाबाद  में उनके घर गए और उनके इस आंदोलन को समर्थन देने का वायदा किया और फिर जीवन के अंत तक श्रीराम मंदिर के लिए लड़ते रहे। आज ये तीनों विभूतियां निश्चित रूप से भगवान श्री राम के नित्य निवास 'साकेतधाम के पार्षद हैं और वहीं आकाश से इस निर्णय को एकमत से देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों विशेषकर  न्यायमूर्ति श्री रंजन गोगोई और उनके मुसलमान साथी  न्यायमूर्ति श्री अब्दुल नजीर  साहब  को आशीर्वाद दे रहे हैं। इस हर्षोल्लास की घड़ी में हम इन तीनों महान विभूतियों सहित ही उन सभी दिव्य भक्तों के श्रीचरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, जिन्होंने किसी भी रूप में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि मुक्ति के इस आंदोलन में थोड़ा सा भी योगदान किया।

विनीत नारायण
 


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