Radha Ashtami 2019: जानिए, इस दिन से जुड़ी कुछ खास बातें

punjabkesari.in Wednesday, Sep 04, 2019 - 05:21 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
राधाष्टमी का पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। ये दिन राधा रानी के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में इन्हें माता लक्ष्मी का रूप माना जाता है। 
राधा रानी को भगवान कृष्ण की दैवीय प्रेमिका के रूप में जाना जाता है, इनका अवतार कमल के फूल से हुआ। राधाष्टमी मुख्य रूप से उन भक्तों द्वारा मनाया जाता है, जो भगवान कृष्ण की आराधना करते हैं। 
PunjabKesari, kundli tv, Radha Ashtami 2019, राधाष्टमी
परंपराओं के अनुसार, गौडिया वैष्णव संप्रदाय श्रीकृष्ण एवं राधा रानी के प्रति समर्पित होकर उनकी पूजा करते हैं। यह संप्रदाय चैतन्य महाप्रभु द्वारा वर्णित भगवत गीता और भागवत पुराण का पाठ करते हैं, चैतन्य महाप्रभु वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक है। गौडिया वैष्णव संप्रदाय राधाष्टमी को अपनी प्रथाओं और परम्पराओं के अनुरूप आधे दिन उपवास का करते हैं। कुछ भक्त इस दिन सख्त उपवास का पालन भी करते हैं। वे पानी की बूंद का उपभोग किए बिना पूरे दिन कड़ा व्रत करते हैं। राधाष्टमी भगवान कृष्ण और राधा रानी के ईश्वरीय प्रेम के समरूप मनाया जाता है, भक्त श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त के लिए प्रशंसा, भजन और गीतों के साथ राधा रानी की पूजा करते हैं।
PunjabKesari, kundli tv, Radha Ashtami 2019, राधाष्टमी
राधाष्टमी मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। राधाष्टमी को बरसाना, मथुरा, वृंदावन, नंदगांव तथा आस-पास के क्षेत्र (ब्रज भूमि) में मुख्य रूप से मनाया जाती है। इस दिन राधा रानी और भगवान कृष्ण के विग्रह पूर्ण रूप से फूलों से सजाया जाता हैं। राधाष्टमी वह दिन है जब भक्त राधा रानी के चरणों के शुभ दर्शन प्राप्त करते हैं, क्योंकि दूसरे दिनों में राधा जी के पैर ढके रहते हैं। राधाष्टमी भगवान और मनुष्य के बीच एक अद्वितीय संबंध का प्रतीक है, जो श्रीकृष्ण और राधारानी के निःस्वार्थ दैवीय प्रेम बंधन को दर्शाता है। राधा अष्टमी उत्सव भारत के प्रसिद्ध जन्माष्टमी उत्सव के 15 दिनों के बाद मनाया जाता है।
PunjabKesari, kundli tv, Radha Ashtami 2019, राधाष्टमी
आमतौर पर बरसाने के पवित्र राधा कुंड में स्नान करना निषिद्ध है। लेकिन राधा अष्टमी के दिन, भक्त राधा कुंड के पवित्र जल में डुबकी लेने के लिए मध्यरात्रि तक कतार में खड़े होकर प्रतीक्षा करते हैं ताकि वह अपने आराध्य के दिव्य प्रेम और आशीर्वाद को प्राप्त कर सकें। बरसाना को ही श्री लाड़ली जी की स्थली माना जाता है। लेकिन उनका जन्म रावल में हुआ था। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Lata

Recommended News

Related News