Radha Ashtami: मुस्लिम भक्त ‘राधा’ वियोग में हो गया गुम, सत्य कथा

punjabkesari.in Thursday, Sep 05, 2019 - 08:46 AM (IST)

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गुलाब सखी का आख्यान करीब सवा सौ साल पुराना है। गुलाब के देशकाल को लेकर ब्रज के ग्रंथों में कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिलती लेकिन गुलाब सखी के आख्यान का उल्लेख आधुनिक राधा भक्त के रूप में अवश्य मिलता है। विश्व में ब्रज राधाकृष्ण के अलौकिक प्रेम और संस्कृति के लिए जाना जाता है। इसकी खासियत रही है, जिसने भी इसे अनुभव किया वह अपने आप से बगावत कर बैठा। कृष्ण प्रेम में मीरा और रसखान की बगावत आज भी कृष्ण भक्ति का सिरमौर है तो वहीं राधा प्रेम में बगावत का एक नाम है मुस्लिम भक्त गुलाब सखी का। बरसाना की माटी व मुस्लिम परिवार में जन्मा गुलाब ब्रज की प्रेम संस्कृति में ऐसा रच-बस गया कि वह अपनी बेटी को राधा नाम से पुकारता था।

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गुलाब बरसाना के राधा रानी मंदिर प्रांगण में नित्य संगीत साधना किया करता था और उसकी सारंगी की धुनों में प्रस्फुटित होने वाले भजनों पर उसकी नन्ही-सी बेटी राधा नाचा करती थी। यही उसकी आजीविका का साधन था। गुलाब सबी ब्रजवासियों का प्यार था। मंदिर से हर दिन प्रसाद मिल जाता था। ब्रज रज में रचा-बसा गुलाब बेटी की शादी के बाद उसका वियोग सह न सका और एक दिन अचानक गायब हो गया। उसकी स्मृति आज पीली पोखर के निकट बरसाना-नंदगांव के प्राचीन मार्ग पर एक चबूतरे के रूप में मौजूद है, उसे गुलाब सखी का चबूतरा पुकारा जाता है।

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श्रीजी की सेवा में पाकर गुलाब अपने को धन्य मानता था। गुलाब की भक्ति की चर्चा करते हुए ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता गोस्वामी घनश्याम राजा भट्ट बताते हैं कि ब्रजवासियों के सहयोग से गुलाब ने अपनी बेटी की शादी कर दी। बेटी की विदाई के बाद गुलाब मंदिर की सिंहपौर पर तीन दिन, तीन रात भूखा-प्यासा गुमसुम बैठा रहा और राधा नाम की आहें भरता रहता। लोगों को चिंता हुई। तीसरे दिन-रात को गुलाब के कानों में एक आवाज पड़ी कि बाबा मैं आ गई हूं, सारंगी नाय बजायगौ का। आवाज सुनने के बाद गुलाब सारंगी बजाने लगा और देखा कि उसकी बेटी राधा नाच रही है, पर ऐसा था नहीं। स्वयं श्रीजी नाच रही थीं। इसके बाद गुलाब कहां गया, कोई जानकारी नहीं मिलती। गुलाब की स्मृति चबूतरे के रूप में उसे ब्रजवासियों के मनों में जिंदा रखे हुए है। 

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Niyati Bhandari

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