समस्त सनातन जगत के आराध्य भगवान परशुराम जयंती 28 अप्रैल को मनाई जाएगी

punjabkesari.in Wednesday, Apr 26, 2017 - 09:40 AM (IST)

कोई भी कर्म जो जन-कल्याण की भावना से किया जाता है, वह यज्ञ स्वरूप हो जाता है और इससे धर्म की प्रतिष्ठा होती है। 


‘‘धर्मो विश्वस्य जगत: प्रतिष्ठा।’’ 


जब से इस संसार में मानव जाति की उत्पति हुई तब से ही मानवीय समाज को अच्छाई-बुराई का अंतर समझाने, धर्म तथा अधर्म का भेद समझाने के लिए ऋषियों-मुनियों द्वारा उपनिषदों, पुराणों इत्यादि धर्म ग्रंथों की रचना की गई। इस संसार में जब-जब आसुरी शक्तियों ने मानव जाति को अत्यधिक कष्ट पहुंचाया, तब-तब श्री हरि विष्णु भगवान ने अपने स्वरूप का सृजन किया। इसी कड़ी में भगवान विष्णु ने भृगुकुल में जमदग्रि ऋषि पिता तथा माता रेणुका के पुत्र के रूप में भगवान परशुराम के रूप में जन्म लिया जिन्हें पुराणों में भगवान का छठा अवतार माना गया। इन्हें भगवान शिव ने अपना अमोघ परसा प्रदान किया, जिससे उनका नामकरण परशुराम हुआ।


जब मनुष्य के पास शक्तियां आती हैं तो उसका अहंकार, घमंड, काम तथा क्रोध भी बढ़ जाता है, तो वह अधर्म को भी धर्म के रूप में परिभाषित करने लगता है। उस समय का एक राजा सहस्रार्जुन, जिसकी एक हजार भुजाएं थीं और जिसे भगवान दत्तात्रेय से वरदान प्राप्त था, एक समय ऋषि जमदग्रि के आश्रम में आया। 


आश्रम की संपन्नता देख वह आश्चर्यचकित हो गया। जब उसको ज्ञात हुआ कि यह सब कामधेनू गाय की कृपा है, तब वह बलपूर्वक कामधेनू गाय को ले गया। जब भगवान परशुराम जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे मार्ग में रोक कर उससे युद्ध किया और उसका वध कर दिया जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप सहस्रार्जुन के पुत्रों ने ऋषि जमदग्रि का वध कर दिया।  तब भगवान परशुराम जी ने ऐसे आततायी राजाओं को दंडित किया।
अजर, अमर, अविनाशी भगवान परशुराम जी समस्त शस्त्र एवं शास्त्रों के ज्ञाता हैं। इन्होंने कालांतर में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा कर्ण को भी अस्त्र-शस्त्र की विद्या प्रदान की। उन्होंने सदैव इस बात का ध्यान रखा कि शस्त्र विद्या का दुरुपयोग न होने पाए। 


इतिहास साक्षी है कि जब-जब आसुरी शक्तियों को शक्तियां प्राप्त हुई हैं, उन्होंने उनका प्रयोग मानव जाति के विनाश तथा उनको प्रताडि़त करने के लिए किया है। राजा जनक के दरबार में सीता स्वयंवर के समय जब भगवान परशुराम जी को यह ज्ञात हुआ कि भगवान राम स्वयं धर्म की रक्षा तथा अधर्मियों के विनाश के लिए अवतरित हुए हैं तब वह अत्यंत संतुष्ट हुए और उन्हें धनुष प्रदान किया। वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया, जिसे हम अक्षय तृतीया भी कहते हैं, के दिन भगवान परशुराम जी का प्राकट्य हुआ था।


एक समय पार्वतीनंदन गणेश जी के साथ परशुराम जी का युद्ध हुआ। उस युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया जिससे उनका नाम एकदंत पड़ा। भगवान परशुराम जी समस्त सनातन जगत के आराध्य हैं। हर युग में भगवान परशुराम जी ने समाज में सामाजिक न्याय एवं समानता की स्थापना के लिए अपना अतुलनीय योगदान दिया। अष्ट चिरंजीवियों में शामिल भगवान परशुराम जी कलियुग में होने वाले भगवान के कल्कि अवतार में उन्हें वेद-वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान करेंगे। कोई भी पुराण भगवान परशुराम जी के पावन चरित्र के बगैर पूर्ण नहीं होता।


ॐ जयति भृगुकुल तिलको, विप्र कुलमानवद्र्धनो देव:।
जामदग्नेय: कलिकल्मषात् श्री परशुराम: पुनातु।।


भृगुकुल तिलक, ब्रह्माणों के कुल का मान बढ़ाने वाले देव की जय हो। जमदग्रि पुत्र श्री परशुराम जी कलियुग के पापों से हमें बचाएं।

 


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