3 साल बाद आती है पद्ममिनी एकादशी, जानें इसका महत्व
punjabkesari.in Sunday, Sep 27, 2020 - 11:17 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सनातन धर्म में यूं तो कुल 24 एकादशी आती हैं, जिस दौरान भगवान श्री हरि की पूजा की जाती है। परंतु जब तीन साल में एक बार अधिक मास आता है तो ये संख्या बढ़कर 26 हो जाती हैं। कहा जाता है पुरुषोत्तम मास में पद्ममिनी तथा परम एकादशी आती हैं, जो बहुत ही पावन मानी जाती है। बता दें उन्हीं में से एक इस बार 26 सितंबर को मनाई जा रही है। धार्मिक शास्त्रों में कार्तिक मास की तरह इस मास का भी अधिक महत्व है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें-
हिन्दी पंचांग के अनुसार, पद्मिनी एकादशी का व्रत अधिकमास या मलमास के समय में आता है। ऐसे में अधिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। पद्मिनी एकादशी को अधिकमास एकादशी भी कहा जाता है। इस साल पद्मिनी एकादशी का व्रत 27 सितंबर दिन रविवार को है। सभी एकादशी के तरह पद्मिनी एकादशी में भी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से पद्मिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। तो चलिए अब आपको बताते हैं कि पद्मिनी एकादशी व्रत और पूजा का मुहूर्त। साथ ही साथ बताएंगे एकादशी का महत्व। चलिए अब आपको बताते हैं पद्मिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त-
अधिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 26 सितंबर दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 29 मिनट पर हो रहा है, जो 27 सितंबर दिन रविवार को सुबह 7 बजकर 16 मिनट तक है। ऐसे में आपको पद्मिनी एकादशी का व्रत 27 सितंबर को रखना उचित है।
बता दें कि पद्मिनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद पारण करके व्रत को पूरा करना चाहिए। पद्मिनी एकादशी व्रत के पारण का समय 28 सितंबर दिन सोमवार को सुबह 06 बजकर 19 मिनट से सुबह 08 बजकर 28 मिनट के बीच है। आपको इसके मध्य पारण कर लेना चाहिए। द्वादशी तिथि के समापन का समय 08 बजकर 28 मिनट है। एकादशी का पारण द्वादशी तिथि के खत्म होने से पूर्व कर लेना चाहिए।
पद्मिनी एकादशी का महत्व
भगवान श्रीकृष्णक ने धर्मराज युधिष्ठिर से पद्मिनी एकादशी के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि मलमास के समय में लोगों को अनेक पुण्यों को प्रदान करने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति कीर्ति प्राप्त करता है और मृत्यु के बाद वैकुंठ को जाता है। वैकुंठ तो मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है। तो अगर आप भी भगवान विष्णु के इस एकादशी व्रत को रखते हैं तो अवश्य ही उनकी कृपा बनी रहेगी।