Motivational Concept: ‘भ्रांतियों’ का भार न ढोइए

punjabkesari.in Sunday, Nov 14, 2021 - 05:13 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक साधु ने एक बहेलिए से जंगल से पकड़ा गया तोता इसलिए खरीद लिया ताकि वह पिंजरे का पक्षी न बन जाए। साधु द्वारा सिखाए जाने पर वह तोता एक चेतावनी भरा स्वाधीनता का गाना गाने लगा। फिर साधु ने उस तोते को उसके पैतृक परिवार से मिला दिया। साधु के तोते ने अपनत्व अर्जित ज्ञान एवं गान पूरे परिवार को सिखा दिया। अब उसी स्वाधीनता ज्ञान से उदय होता था भोर का तारा और उसी से ढलती थी शाम। कालांतर में वही बहेलिया उसी जंगल में उसी उद्देश्य से आया। सभी तोते एक साथ एक ही गीत गा रहे थे - ‘बहेलिया आएगा, जाल बिछाएगा, दाने डालेगा हमें फंसाएगा, किन्तु हम नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे।’

बदली हुई परिस्थिति में, अपनी रोटी- रोजी हाथ से निकलते देख बहेलिया गश खाकर गिर पड़ा। होश आने पर उसने सोचा कि जब जंगल तक आए हैं तो दाना डालने और जाल बिछाने की औपचारिकता कर ही दी जाए। ऐसा करके पेड़ की छांव में और शीतल हवा में वह सो गया।  बहेलिए की आंख खुली तो उसे स्वयं अपनी ही आंखों पर विश्वास न हुआ। दाना खाने आए अनगिनत तोते अब जाल में फंस कर स्वाधीनता गान गा रहे थे- ‘बहेलिया आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, हमें फंसाएगा किन्तु हम नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे।’ फिर भी सभी तोते उस बहेलिए के जाल में फंसे हुए थे। 

स्वाधीनता गान गा लेने से ही हम स्वाधीन बने रहेंगे यह भ्रांति है। भ्रांतिमय जीवन जी कर हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकते, लक्ष्य कुछ भी क्यों न हो। धर्मग्रंथ घर में रखकर, केवल उसकी पूजा करने से या आरती उतारने से जीवन मंगलमय होता है यह विचार भ्रांतिमूलक है। धर्मग्रंथ का अध्ययन करना चाहिए और धर्म पथ पर स्वयं चलना चाहिए। वेदमंत्र का अर्थ समझकर और वेदोक्त मार्ग पर चलकर ईश्वर की आज्ञा का पालन करके ही एक व्यक्ति सच्चा आर्य (श्रेष्ठ पुरुष) बन सकता है। यही बात अन्य धर्मों के ग्रंथों पर भी लागू होती है।

हम मनुष्यों को शास्त्रों का बोझ नहीं ढोना है, शास्त्रों के अनुसार ही जीवन जीना है। शास्त्र हमें भ्रांतियों की अंधेरी गलियों में खो जाने से बचाते हैं। अविद्या जननी है भ्रांति की। पिछली कई शताब्दियों से स्त्रियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रख कर भारतीय समाज में अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। देश की जनसंख्या का आधा भाग अविद्या के अंधकार में चला गया। अशिक्षित व्यक्ति में भ्रांतिमूलक विचार पनपते हैं। जब माताएं भ्रांति ग्रस्त हो जाती हैं तो बच्चों के कोमल मन को भ्रांति ग्रस्त होने में विलम्ब कहां। बचपन में जो भ्रांति भीतर घुस जाती है, वह बाद में शिक्षा के पैने प्रहार से भी निर्मूल नहीं हो पाती। भ्रांति हमारे निर्बल मन-मस्तिष्क को उर्वर पाकर पनपती है।

भूत-प्रेत, जिन्न, पिशाच को भटकती आत्माएं समझना यदि भ्रांतिमूलक विचार नहीं तो और क्या है। जो बीत गया वह भूत है और भूत कभी भी वर्तमान पर हावी नहीं हो सकता। एक शरीर छोडऩे के बाद आत्मा नए शरीर में प्रवेश करती है, अत: भटकती आत्मा भ्रांति है। आनंदमय जीवन के अनेक अंधविश्वास जैसे ताबीज, बांधना, बिल्ली द्वारा रास्ता काट जने को विघ्न मानना है, ये सब निर्बल मन की उपज है।  —ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत


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Content Writer

Jyoti

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