Niti Gyan: बुराइयों को कभी जीवन में न अपनाएं

punjabkesari.in Friday, Apr 23, 2021 - 06:29 PM (IST)

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आर्य जगत के एक अनमोल रत्न पं. सत्यपाल पथिक ने अपना सम्पूर्ण जीवन आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में लगाया। इनका जन्म 13 मार्च 1929 को स्यालकोट में हुआ था। पं. सत्यपाल की बचपन की शिक्षा मदरसे में हुई थी। उन्होंने उर्दू को बंटवारे के बाद भी नहीं छोड़ा था। इनके बचपन के 17-18 वर्ष वहीं पर गुजरे। जब भारत- पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो उन्होंने उस भयावह दृश्य को भी प्रत्यक्ष अनुभव किया। बंटवारे की जंग में उन्होंने तीन बार मौत को करीब से देखा। उस समय जब कुछ मुसलमान उनके घर में आग लगाने के लिए जा रहे थे तो इस्माइल नामक एक मुसलमान ने उन्हें अपने घर में 15 दिन तक आश्रय दिया और पूरे परिवार की जान बचाई।

भारत आते समय रास्ते में दो बार दहशतगर्दों ने उन्हें घेर लिया, लेकिन उनके पिता स्यालकोट के जाने-माने व्यक्ति थे, इसलिए उनका परिवार बच गया। स्यालकोट से आने के बाद इनका परिवार अमृतसर में आकर बस गया। पं. सत्यपाल पथिक को स्यालकोट की मिट्टी ने ऐसी खनक दी थी कि उनका भजन सुनकर सभी भाव-विभोर हो जाते थे। पं. सत्यपाल पथिक ने पूरे विश्व में वेदों का प्रचार किया। सिंगापुर में तो करीब साढ़े तीन साल रह कर प्रचार करते रहे। विश्व का सबसे बड़ा यज्ञ वैदिक रीति से उन्होंने सम्पन्न किया जिसमें सिंगापुर के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपनी आहुतियां डालीं। देश का पहला डी.ए.वी. विश्वविद्यालय जालंधर में खुला तो उसका शुभारंभ पथिक जी के भजनों से किया गया। 100 से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय मंचों को अपने भजनों से भाव विभोर करने वाले पथिक जी के भजनों में यह भजन उन्हें सबसे प्रिय था, ‘‘किसी के काम जो आए, उसे इंसान कहते हैं, पराया दर्द अपनाए, उसे इंसान कहते हैं।’’

देश दुनिया में करीब 10 हजार आर्य समाज हैं। आर्य समाज द्वारा संचालित डी.ए.वी. शिक्षण संस्थाएं हैं। इन सभी संस्थाओं में पं. सत्यपाल पथिक के भजन गाए जाते हैं। योग गुरु स्वामी रामदेव अपने बचपन से ही पथिक जी के लिखे हुए भजन गाते हैं।

श्री सत्यपाल पथिक अपने निवास स्थान 70-ए, गोकुल विहार अमृतसर में एकांत में भजन लिखा करते थे। श्री सत्यपाल पथिक ने 1 हजार से अधिक आर्य समाज के भजन लिखे हैं जिन्हें सभी मतों के लोग बड़ी श्रद्धा से गाते हैं। उनके लिखे चंद प्रसिद्ध भजन हैं

1. हम कभी माता-पिता का ऋण चुका सकते नहीं।
2. बुराइयों को कभी जीवन में अपनाना नहीं चाहिए।
3. किसी के काम जो आए, उसे इंसान कहते हैं।
4. गुरुदेव प्रतिज्ञा है मेरी, पूरी करके दिखला दूंगा।
5. भगवान आर्यों को पहली लगन लगा दे।
6. प्रभु मेरे जीवन का उद्धार कर दो।
7. हम सब मिल के दाता आए तेरे दरबार।

पं. सत्यपाल पथिक महर्षि दयानंद के सच्चे अनुयायी थे। वह एक पक्के सिद्धांतनिष्ठ व्यक्ति थे। उनके सामने कोई भी व्यक्ति सिद्धांत विरुद्ध कार्य नहीं कर सकता था। महर्षि दयानंद जी की विचारधारा एवं उनके सिद्धांतों को उन्होंने मनसा, वाचा, कर्मणा अपने जीवन में अपनाया हुआ था। वे अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक अपने इन्हीं सिद्धांतों पर अडिग रहे।  उनका 22 अक्तूबर को अमृतसर में निधन हो गया। श्री सत्यपाल पथिक आदर्शवादी व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। —प्रेम भारद्वाज  


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Content Writer

Jyoti

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