कड़वे प्रवचन लेकिन सच्चे बोल- मुनि श्री तरुण सागर जी

punjabkesari.in Tuesday, Nov 16, 2021 - 02:17 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
इंसानियत का मंदिर
मंदिर और मस्जिद तो सैंकड़ों बार बनेंगे-टूटेंगे लेकिन इंसानियत का मंदिर एक बार खंडित हो गया तो फिर किसी में इतना दम नहीं है कि उसे फिर दोबारा से खड़ा कर सके। क्या मिट्टी की ईंट, चूना और सीमैंट का मूल्य इंसानियत की ईंट, चरित्र के चूना और सत्य के सीमैंट से ज्यादा हो सकता है?

कुत्ते का चाटना और काटना
कुत्ता-कल्चर समाज में तेजी से बढ़ रहा है। पहले लोग गाय पालते थे, अब कुत्ते पालते हैं। एक समय हमारे घर के बाहर लिखा होता था ‘अतिथि देवो भव:’। फिर लिखा जाने लगा ‘शुभ-लाभ’। समय आगे बढ़ा, तो उसके बाद लिखा गया ‘वैलकम’। और अब लिखा जाता है ‘कुत्ते से सावधान’। यह सांस्कृतिक पतन है। कुत्ते को रोटी देना, मगर उससे प्रेम मत करना। प्रेम करोगे तो मुंह चाटेगा, लाठी मारोगे तो पैर काटेगा। उसका चाटना और काटना दोनों बुरे हैं।

प्याज और ब्याज
पसीना बहाना सीखिए। बिना पसीना बहाए जो हासिल होता है वह पाप की कमाई है। ब्याज मत खाइए। ब्याज पाप की कमाई है क्योंकि इसमें पसीना नहीं बहाना पड़ता लेकिन हम बड़े चतुर लोग हैं, आज हमने प्याज खाना तो छोड़ दिया लेकिन ब्याज खाना जारी है। ब्याज खाना प्याज खाने से भी बड़ा पाप है। पसीने की रोटी खाइए। पाप की कमाई से आप पत्नी को सोने का कंगन तो पहना सकते हैं मगर यह भी संभव है कि इसके लिए आपको लोहे की हथकडिय़ां पहननी पड़ जाएं।

आंखों और जुबान को संभालो
मनुष्य जाति में दो पुरानी बुराइयां हैं। एक ताने मारने की और दूसरी आंख मारने की। पुरुष अगर आंख मारना और महिलाएं ताने मारना बंद कर दें तो जीवन और समाज के आधे संघर्ष खत्म हो जाएं। अस्त्र-शस्त्र से अब तक जितने लोग नहीं मरे होंगे उससे भी अधिक लोग ताने और आंख मारने से मर चुके हैं। बस अपनी आंखों और जुबान को संभाल लो, सब कुछ संभल जाएगा। आंख और जुबान बड़ी नालायक हैं क्योंकि सारी गड़बडिय़ां इन्हीं से शुरू होती हैं।

क्रोध का परिवार
क्रोध का अपना पूरा खानदान है। क्रोध की एक लाडली बहन है-जिद। वह हमेशा क्रोध के साथ-साथ रहती है। क्रोध की पत्नी है-ङ्क्षहसा। वह पीछे छिपी रहती है लेकिन कभी-कभी आवाज सुनकर के बाहर आ जाती हैं।  क्रोध के बड़े भाई का नाम है-अहंकार। क्रोध का बाप भी है जिससे वह डरता है। उसका नाम है-भय। निंदा और चुगली क्रोध की बेटियां हैं। एक मुंह के पास रहेगी तो दूसरी कान के पास। वैर बेटा है। ईर्ष्या इस खानदान की नकचढ़ी बहू है। इस परिवार में पोती है-घृणा। घृणा हमेशा नाक के पास रहती है। नाक-भौं सिकोडऩा काम है इसका। उपेक्षा क्रोध की मां है।

एक-एक पल का महत्व
समय अमूल्य है। जिंदगी में एक वर्ष का क्या महत्व है? यह इसी वर्ष फेल हुए विद्यार्थी से पूछिए। एक माह का महत्व जानना है तो उस मां से मिलिए जिसने ‘अठ-मासिया’ बच्चे को जन्म दिया है। सात दिन का महत्व जानना है तो किसी साप्ताहिक-पत्र के संपादक से मिलिए। एक दिन का महत्व वह दिहाड़ी मजदूर ही बता सकता है जिसे आज मजदूरी नहीं मिली है। एक घंटे का महत्व जानना है तो सिकंदर से पूछिए जिसने आधा राज्य देकर एक घंटे मौत को टालने का आग्रह किया था। एक मिनट का महत्व उस भाग्यशाली से पूछिए जो वल्र्ड ट्रेड सैंटर की इमारत गिरने से ठीक एक मिनट पहले ही बाहर सुरक्षित निकला है। अब बचा एक सैकेंड तो एक सैकेंड का महत्व उस धावक से पूछिए जो इसी एक सैकंड की वजह से स्वर्ण पदक पाते-पाते रजत पदक पर रह गया।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Jyoti

Recommended News

Related News