कड़वे प्रवचन लेकिन सच्चे बोल- मुनि श्री तरुण सागर जी

punjabkesari.in Saturday, Aug 22, 2020 - 10:30 AM (IST)

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मुर्दे और मनुष्य
आज भले ही चार भाई एक साथ रहते हैं। चारों का ‘पता’ भी एक है लेकिन एक दूसरे के बारे में किसी को कुछ नहीं ‘पता’। आज घरों में होटल-संस्कृति तेजी से पनप रही है। एक भाई सामने के दरवाजे से घर में प्रवेश करता है तो दूसरा भाई पीछे के दरवाजे से बाहर निकल जाता है। होटलों में भी तो यही होता है। ध्यान रखना अगर घर के सदस्यों के बीच आपसी संवाद नहीं तो कब्रों में रहने वाले मुर्दों और कमरों में रहने वाले मनुष्यों में कोई फर्क नहीं।

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महल और सराय
सेठ आलीशान कोठी के सामने अकड़ कर बैठा था। संत ने उसकी अकड़ तोडऩे के लिए उससे पूछा, ‘‘भाई इस सराय में कौन रहता है?’’
सेठ नाराज हुआ और बोला, ‘‘तुम कैसे साधु हो, जो महल को सराय कहते हो।’’
संत ने पूछा, ‘‘अभी इसमें कौन रहता है।’’
सेठ, ‘‘मैं सेठ अकड़ूलाल।’’
संत, ‘‘इससे पहले कौन रहता था?’’
सेठ, ‘‘मेरे पिता जी।’’
संत, ‘‘और उससे पहले।’’
सेठ, ‘‘मेरे दादा जी।’’
संत, ‘‘अरे भाई। जहां आकर लोग रहते हों और चले जाते हों वह सराय नहीं तो और क्या है?’’

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घर और आदमी
घर दो तरह से छोड़ा जाता है। एक खड़े-खड़े और दो पड़े-पड़े। मतलब एक, खड़े होकर और दो, आड़े होकर। जो आड़े होकर घर छोड़ता है वह मुर्दा और जो खड़े होकर घर छोड़ देता है वह मुनि। दरअसल आड़े होकर घर छोड़ा नहीं जाता वरन उसे घर से निकाल दिया जाता है और खड़े होकर घर से निकाला नहीं जाता वरन वह खुद-ब-खुद निकल जाता है। अब निर्णय आपको करना है कि घर कैसे छोड़ना?

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Niyati Bhandari

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