Jawaharlal Nehru: पुस्तक का अपमान लेखक का अपमान

punjabkesari.in Thursday, Dec 23, 2021 - 02:52 PM (IST)

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जवाहर लाल नेहरु किताबों से गहरा लगाव रखते थे। वे पुस्तकें पढ़ते ही नहीं, उन्हें संभालकर बड़े प्यार से रखते थे। बेतरतीब ढंग से रखी पुस्तकें देखकर उनका मूड खराब हो जाता था। एक बार नेहरु जी अपने एक दोस्त के यहां ठहरे हुए थे। जब किसी कार्यवश कुछ घंटों के लिए उनके मित्र घर से बाहर गए तो कुछ पढ़ने के लिए नेहरु जी ने पुस्तकों की अलमारी खोली। अलमारी में किताबें इधर-उधर फैंकी हुई-सी पड़ी थीं। 

यह देखकर नेहरु जी को बड़ा दुख हुआ। एक सुंदर-सी पुस्तक अलमारी के कोने में धूल से सनी पड़ी थी। नेहरु जी ने उस पुस्तक को उठाया, साफ किया और अपने पास रख लिया। इसके बाद उन्होंने एक तरफ से शुरू करके पूरी अलमारी साफ की तथा बेतरतीब ढंग से रखी पुस्तकों को झाड़-पोंछ कर, साफ करके यथासंभव ठीक ढंग से रख दिया।

जब मेजबान वापस आए तो उन्होंने पंडित जी का चेहरा देखकर ही समझ लिया कि दाल में कुछ काला है। नेहरु जी ने उन्हें डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें सम्मान करना नहीं आता तो मुझे अपने यहां बुलाते ही क्यों हो? तुमने मेरा अपमान किया है। अब मैं तुम्हारे यहां कभी नहीं आऊंगा।’’ 

मेजबान गिड़गिड़ाए।

जब पंडित जी का क्रोध शांत हुआ तो वे बोले, ‘‘जानते हो मैंने तुम्हारी अलमारी में पुस्तकों को दुर्दशा की स्थिति में पड़ा पाया। क्या तुम नहीं जानते कि पुस्तक में लेखक की आत्मा निवास करती है? 

पुस्तक का अपमान लेखक का अपमान है। उम्मीद है कि तुम मेरा मतलब समझ गए होंगे।’’ 

मेजबान ने पंडित जी से क्षमा मांगी और भविष्य में पुस्तकों की कद्र करने का वायदा किया।


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Content Writer

Jyoti

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