समस्त बंधनों से छूट जाना ही हैै मुक्ति का उद्देश्य

punjabkesari.in Saturday, May 09, 2020 - 11:08 AM (IST)

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एक बार एक चरवाहा अपनी गाय को रस्सी से बांधकर जंगल की ओर ले 4 जा रहा था। मगर गाय थी कि जाने को तैयार नहीं थी। तभी वहां से गौतम बुद्ध निकले। बुद्ध ने देखा कि चरवाहा गाय को जंगल की ओर ले जाने की कोशिश करता, तो गाय दूसरी ओर भागती। गाय की हरकतों से झुंझलाकर 5 चरवाहा कभी पूरा दम लगाकर उसको रस्सी खींचता तो कभी उसकी पिटाई भी सर करता। दोनों के बीच चलती कश्मकश देखकर बुद्धसोचने लगे कि गाय है, चरवाहा है और रस्सी भी है, लेकिन तीनों में तालमेल बिल्कुल नहीं है। तभी वहां से गांव के भी कुछ लोग न निकले। चरवाहे और गाय की कशमकश है देख वे भी वहीं ठहर गए। बुद्ध ने गांव के है लोगों से पूछा, “यह गाय इस चरवाहे के साथ क्‍यों है?'' 
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लोगों ने जवाब दिया कि इसमें कौन- है सी बड़ी बात है। यह गाय इस चरवाहे के साथ ही बंधी है। फिर बुद्ध ने पूछा कि अगर यह गाय इस चरवाहे के साथ बंधी है तो फिर यह चरवाहे के साथ क्‍यों नहीं है? लोग सोचने लगे। बुद्ध फिर बोले, अगर यह गाय भाग जाए, तो बताइए कि चरवाहा उसके पीछे भागेगा या नहीं ?”
 

इस पर लोग बोले कि चरवाहे को गाय के पीछे भागना ही पड़ेगा। यह सुनकर बुद्ध ने लोगों को समझाया, "देखो, चरवाहे से गाय जिस बंधन से बंधी है, उस बंधन को हम देख सकते हैं। लेकिन जो नहीं दिखाई देता, वह है चरवाहे के गले में पड़ी अदृश्य रस्सी । उसी के चलते वह गाय को छोड़ नहीं पा रहा है। गाय किसी ओर भाग रही है तो वह भी उसके पीछे खिंचा जा रहा है। हम सब भी ऐसे ही बंधे हैं। किसी का बंधन दिखाई देता है तो किसी का नहीं दिखाई देता। हम ऐसे बंधनों के गुलाम हैं। मुक्ति का उद्देश्य ऐसे तमाम दृश्य- अदृश्य बंधनों से मुक्त होना ही है।''
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Jyoti

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