Motivational Concept: चित्त को गंदा करती है "प्रंशसा"
punjabkesari.in Wednesday, Jul 28, 2021 - 12:58 PM (IST)
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विनोबा भावे नित्य सारी चिटि्ठां जो आश्रम में आतीं, पढ़ा करते और समय से उत्तर देना नहीं भूलते थे। एक दिन आश्रम के एक वरिष्ठ सदस्य वहां बैठे हुए थे। चिटि्ठां छांटते-छांटते विनोबा ने एक चिट्ठी पढ़ी और कूड़ेदान में डाल दी।
उस व्यक्ति ने पूछा, ‘‘आप तो हर पत्र को मन से पढ़ते हैं, इसे आपने थोड़ा पढ़कर कूड़ेदान में क्यों डाल दिया? यह किसका पत्र था जिसे आपने फाड़ डाला।’’
विनोबा जी ने कहा, ‘‘महात्मा गांधी का पत्र था,’’
‘‘तो आपने बापू का पत्र क्यों फाड़ दिया?’’
विनोबा ने कहा, ‘‘ऐसे ही।’’
उस सज्जन से रहा नहीं गया। उन्होंने उसे कूड़ेदान से निकालकर जोड़ कर देखा कि क्या लिखा गया है। उसमें महात्मा गांधी जी ने विनोबा की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी।
उस सज्जन ने कहा, ‘‘यह तो संग्रहणीय था-फाड़ना नहीं चाहिए था, यह तो धरोहर है।’’
विनोबा ने सीधे शब्दों में कहा, ‘‘वह पत्र ही क्या जिसमें खाली बड़ाई लिखी हो। यह तो चित्त को गंदा कर देगा, अहंकार उत्पन्न करने वाला है’’ और फिर मुस्कुराने लगे।
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