इस प्ररेक प्रसंग से बहुत कुख सीखने को मिलेगा, पढ़ें ज़रूर

punjabkesari.in Sunday, Jul 19, 2020 - 06:26 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
मंदार फूलों का अहंऊषाकाल का मनोरम समय था। प्राकृतिक छटा चहुं ओर बिखरी थी। बाग के एक कोने में मंदार के फूल अपने सौंदर्य के नशे में डूबे मकरंद के वैभव-विलास के अहं में इतरा रहे थे।

बाग में वहीं कोने में चांदनी का एक छोटा-सा पौधा भी था। मंदार फूलों में से एक ने चांदनी के फूल की ओर उपेक्षा भरी दृष्टि से देखते हुए कहा-अरे, तुम्हारा भी कोई जीवन है! रुग्ण जैसी दिखाई देने वाली दुर्बल काया, रंगविहीन पंखुडिय़ां। लगता है विधाता ने तुम्हें किन्हीं पूर्व कर्मों का दंड दिया है। जरा मेरी ओर देखो, हृष्ट-पुष्ट कलेवर के साथ रंग-बिरंगी रूप-राशि और मकरंद की विपुल संपदा भी मिली है।

चांदनी चुपचाप उसकी बातें सुनती रही। लेकिन मन ही मन उसने संकल्प लिया, अपने-आपको संघबद्ध कर माली को सौंप देने का। तभी माली बाग में आया। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई।

चांदनी के फूलों का मूक आमंत्रण उसे उनके पास ले गया। माली ने चांदनी के फूलों को एक-एक कर चुना और माला के रूप में पिरो दिया। उसी बाग में एक मंदिर था। चांदनी के फूलों की वह माला मंदिर में स्थापित देव प्रतिमा के गले में अर्पित हो गई। चांदनी के फूलों की खुशी का ठिकाना नहीं था।

मंदार के फूलों का अहं चांदनी के फूलों के इस सुखद-गौरवपूर्ण स्थान को देखकर पूरी तरह गल गया। एकांत में उन्होंने चांदनी से इस स्थिति का रहस्य पूछा। चांदनी ने उत्तर दिया-बंधुवर, हंकार रहित सहयोग, स्नेह का सद्भाव तथा अनुशासन ही इसका रहस्य है। हम सभी एक महान लक्ष्य को समर्पित थे। इसी कारण हमने प्रेम के सूत्र में बंधना स्वीकार कर लिया।


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Jyoti

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