जब बापू की निडरता और बड़प्पन का कायल हुआ ये शख्स

punjabkesari.in Wednesday, Mar 25, 2020 - 05:18 PM (IST)

आजादी से पहले की घटना है। बिहार के चंपारण में इंगलैंड से आए कुछ अंग्रेज नील की खेती करते थे। वे निलहे कहलाते थे। ये लोग वहां के किसानों पर बहुत जुल्म ढाते थे और तरह-तरह से उनका शोषण करते थे। इससे वहां के किसान बेहद परेशान थे। किसानों ने गांधी जी से चंपारण आने की प्रार्थना की तो उन्होंने उनका आग्रह मान लिया। वह निलहों द्वारा वहां के किसानों पर किए जाने वाले जुल्मों का पता लगाने चंपारण पहुंचे। वहां की जनता बापू के आगमन से प्रसन्न हो उठी। लेकिन निलहों को यह बात बहुत बुरी लगी। वे आग-बबूला हो उठे, पर गांधी जी इन सबसे विचलित नहीं हुए। वे अपने काम में लगे रहे। एक दिन गांधी जी को पता चला कि एक निलहा उनसे इतना गुस्साया हुआ है कि वह उन्हें मार डालना चाहता है। यह जानकर एक रात गांधी जी स्वयं चलकर उस निलहे की कोठी पर पहुंचे।
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कोठी पर अचानक एक अजनबी को देखकर निलहे ने उनसे पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’ वह बापू को अपना दुश्मन तो मानता था, पर विडंबना यह कि वह उन्हें पहचानता नहीं था। उसके पूछे जाने पर बापू ने सरल भाव से कहा, ‘‘मैं गांधी हूं। शायद आपने मेरा नाम सुना होगा।’’ निलहा आश्चर्यचकित हो गया। उसने कहा, ‘‘तुम यहां किसलिए आए हो?’’
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गांधीजी ने कहा,‘‘सुना है कि आप मुझे मार डालना चाहते हैं। आपको कष्ट न हो इसलिए मैं स्वयं आपके पास आया हूं। लीजिए, आप मुझे मार सकते हैं।’’ बापू की इस तरह की बातें सुनकर उस निलहे के होश फा ता हो गए। उससे कुछ कहते न बना और वह सिर झुका कर बापू के चरणों की ओर देखता रह गया। इसके बाद उसने किसानों को सताना बंद कर दिया। बापू की निडरता और उनके बड़प्पन का वह कायल हो गया और जीवन भर उन्हें नहीं भूला।


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