श्रीकृष्ण की नगरी के दर्शन करवाता है ये मंत्र

punjabkesari.in Monday, Apr 15, 2019 - 02:17 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)


श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है, मनुष्य को वृक्ष के समान सहनशील होना चाहिए। 

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्। य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: ।। 5।।

अर्थात: भगवान श्रीकृष्णचन्द्र कहते हैं जीवन के अंत में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है वह तुरंत मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है। इसमें थोड़ा भी संदेह नहीं है।

PunjabKesariइस श्लोक में कृष्ण शरणागत होने की महत्ता बताई गई है। जो कोई भी श्रीकृष्ण की याद में अपना शरीर छोड़ता है, वह तुरंत उनके दिव्य स्वभाव को प्राप्त होता है। वे शुद्धातिशुद्ध हैं, उनसे शुद्ध तीनों लोकों में दूसरा कोई नहीं है, अत: जो व्यक्ति कृष्णभावनाभावित होता है वह भी शुद्धातिशुद्ध होता है। 

श्री कृष्ण का स्मरण उस अशुद्ध जीव से नहीं हो सकता जिसने भक्ति में रह कर कृष्णभावनामृत का अभ्यास नहीं किया। अत: मनुष्य को चाहिए कि जीवन के प्रारंभ से ही कृष्णभावनामृत का अभ्यास करें। यदि जीवन के अंत में सफलता वांछनीय है तो कृष्ण का स्मरण करना जरुरी है। 

PunjabKesariअत: मनुष्य को निरंतर हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इस महामंत्र का जाप करना चाहिए। 

भगवान चैतन्य ने उपदेश दिया है कि मनुष्य को पेड़ों की भांति होना चाहिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का जाप करने वाले व्यक्ति को अनेक व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है तो भी इस महामंत्र का जप करते रहना चाहिए, जिससे जीवन के अंत समय में कृष्णभावनामृत का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त हो सके। 

PunjabKesari


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News