MP के इस जिले में पाई जाती है महाभारत काल में उपयोग होने वाली ये खास औषधि

punjabkesari.in Friday, Jan 07, 2022 - 12:16 PM (IST)

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द्वापर काल के होने वाले महाभारत युद्ध का जिक्र आज भी किया जाता है। महाभारत महाकाव्य में किए गए वर्णन के अनुसार इस युद्ध में कई सैनिक चोटिल हुए थे। ऐसे में उस समय घाव भरने के लिए वनस्पति का इस्तेमाल किया जाता था। जी हां, बहुत कम लोग हैं जो जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में चोटिल सैनिकों के जख़्मों को एक खास प्रजाति के पौधे से ठीक किया जाता था। आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं, आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताने जा रहे हैं, कि आखिर वो खास प्रजाति का पौधा या औषधि कौन सी थी।

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल के दौरान चोटिल होने वाले सैनिकों के घाव शल्यकर्णी के पौधे की औषधि से भरे जाते थे। बता दें कलियुग में ये दुर्लभ प्रजाति सिर्फ मध्यप्रदेश के रीवा में पाई जाती है और यही वो प्रजाति है जिसका बड़े पैमाने पर सैनिकों के घाव भरने के लिए इस्तेमाल किया गया था। उस दौरान तीर, भाला और तलवार से घायल होने वाले सैनिकों का घाव ठीक करने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। बता दें इस खास औषधि का उल्लेख चरक संहिता में भी मिलता है।

शल्यकर्णी नाम की ये अतिदुर्लभ प्रजाति को आज के समय में भी औषधीय पौधे के तौर पर देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी पत्तियों और छाल के रस को कपड़े में डूबा कर गंभीर घाव में बांध दिया जाता था। जिसके चलते घाव बिना किसी चीर-फाड़ के बाद आसानी से कुछ दिनों में भर जाता था। घाव भरने के लिए शल्य क्रिया में उपयोग किए जाने की वजह से ही इसका नाम शल्यकर्णी रखा गया है। रीवा में शल्यकर्णी के संरक्षण के लिए कई वर्षों से प्रयास चल रहे हैं। यहां के छुहिया पहाड़ में इसके कुछ पुराने पेड़ पाए गए थे, जिनकी शाखाओं से नए पौधे विकसित किए गए हैं। इसके अलावा जिले के ककरहटी के जंगल से भी कुछ पौधे यंहा पर लाये गए हैं लेकिन वर्तमान में केवल रीवा के वन अनुसंधान एवं विस्तार वृत्त में ही इसे विकसित किया जा रहा है।

दुर्लभ औषधियों को संरक्षित करने के लिए सरकार अब बड़े पैमाने पर कार्ययोजना बना रही है शल्यकर्णी भी इसी दुर्लभ प्रजाति में शामिल है, जो रीवा में अब भी मौजूद है। प्रदेश के कुछ जंगलों में होने का दावा तो किया जाता है लेकिन इसके जीवित पेड़ रीवा में ही अधिक पाए गए हैं विलुप्त होती जा रही इस औषधि के नए पौधे तैयार करने का काम रीवा के वन विभाग में चल रहा है जिसके बाद इन्हें और जगहों पर भेजा जाएगा।


 


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Content Writer

Jyoti

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