Hanuman Jayanti: हनुमान जी के मुख से जानें, वो कैसे बने थे बलवान
punjabkesari.in Saturday, Apr 04, 2020 - 09:23 AM (IST)
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हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्र नंदी के अवतार माने जाते हैं। केसरी नंदन मारुती का नाम हनुमान कैसे पड़ा? इससे जुड़ा एक जगत प्रसिद्ध किस्सा है। यह घटना हनुमानजी की बाल्यावस्था में घटी। एक दिन मारुती अपनी निद्रा से जागे और उन्हें तीव्र भूख लगी। उन्होंने पास के एक वृक्ष पर लाल पका फल देखा जिसे खाने के लिए वह निकल पड़े।
दरअसल मारुती जिसे लाल पका फल समझ रहे थे वह सूर्यदेव थे। वह अमावस्या का दिन था और राहू सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे लेकिन वह सूर्य को ग्रहण लगा पाते उससे पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया। राहु कुछ समझ नहीं पाए कि हो क्या रहा है? उन्होंने इंद्र से सहायता मांगी। इंद्रदेव के बार-बार आग्रह करने पर जब हनुमान जी ने सूर्यदेव को मुक्त नहीं किया तो, इंद्र ने वज्र से उनके मुख पर प्रहार किया जिससे सूर्यदेव मुक्त हुए। वहीं इस प्रहार से मारुती मूर्छित होकर आकाश से धरती की ओर गिरते हैं।
पवनदेव इस घटना से क्रोधित होकर मारुती को अपने साथ ले एक गुफा में अंतर्ध्यान हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवों में त्राहि-त्राहि मच उठती है। इस विनाश को रोकने के लिए सारे देवगण पवनदेव से आग्रह करते हैं कि वह अपने क्रोध को त्याग पृथ्वी पर प्राणवायु का प्रवाह करें। सभी देव मारुती को वरदान स्वरूप कई दिव्य शक्तियां प्रदान करते हैं और उन्हें हनुमान नाम से पूजनीय होने का वरदान देते हैं। उस दिन से मारुती का नाम हनुमान पड़ा।
इस घटना की व्याख्या तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा में की गई है-
जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
मानस में कहा गया-प्रनवऊं पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन। जासु हृदय आगार बसङ्क्षह राम सर चाप धर
अर्थात मैं पवनकुमार श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूं, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्रिरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं इसलिए सुंदर कांड में गोस्वामी जी ने स्तवन करते हुए लिखा है-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।
जो अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरू) के समान कांतियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन को ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं। सभी जानते हैं कि हनुमान जी, राम भक्त है और इनके अंदर जितनी भी ताकत है वह श्री राम नाम की है। हनुमान जी खुद कहते हैं कि मेरे अंदर बल नहीं है लेकिन जबसे मैंने राम-राम बोला है, श्री राम का बल भी मुझे मिल गया है। हनुमान जी का पराक्रम बहुत अद्भुत है।