ललिता सप्तमीः हिंदू धर्म में क्या है इस दिन का महत्व ?
punjabkesari.in Wednesday, Sep 04, 2019 - 03:36 PM (IST)
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भाद्रपद का महीना शुरू होते ही त्योहारों की शुरूआत हो जाती है। ऐसे में सबसे ज्यादा लोकप्रिय पर्व कृष्ण जन्माष्टमी व राधा अष्टमी का होता है। लेकिन क्या कोई ये बात जानता है कि इन दोनों त्योहारों के बीच में ललिता सप्तमी का त्योहार भी आता है, जोकि सखी ललिता को समर्पित होता है। ये पर्व भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, जोकि कल यानि 05 सितंबर को मनाया जाएगा। चलिए आगे जानते हैं ललिता देवी के चरित्र के बारे में विस्तार से।
ललिता देवी राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्यारी गोपी में से एक थी। ललिता सप्तमी गोपिका ललिता की जयंती के रूप में मनाया जाता है। सभी भक्त इस दिन श्रीकृष्ण और राधा रानी के साथ ललिता देवी की पूजा करते हैं। ललिता सप्तमी त्योहार राधाष्टमी से एक दिन पहले और जन्माष्टमी के 14 दिन बाद मनाई जाती है।
ललिता सप्तमी का महत्व
ललिता देवी सभी यानि राधा रानी की आठ गोपियों में सबसे प्यारी गोपी के रूप में जानी जाती हैं। वह आठवीं गोपी थी और उनके गोपियों के समूह को अष्टसखियों के रूप में जाना जाता है। अन्य अष्टसखियों में श्री विशाख, श्री चित्रलेखा, श्री चम्पकलता, श्री तुंगविद्या, श्री इंदुलेखा, श्री रंगादेवी और श्री सुदेवी हैं। सभी आठ गोपियां यानि जिन्हें अष्टसखाएं भी कहते हैं, वह अपने प्यारे भगवान कृष्ण और राधा रानी के लिए दिव्य प्रेम प्रदर्शित करती हैं। ललिता देवी को राधा रानी के सबसे वफादार दोस्त के रूप में जाना जाता है। उनके पास एक पीला रूप है और वह मोर की तरह कपड़े पहने हुए हैं।
ललिता देवी में भगवान कृष्ण और राधा देवी के प्रति अत्यधिक जुनून और गरिमा थी। बता दें कि ललिता देवी का जन्म करेहला गांव में हुआ था और फिर उनके पिता उन्हें उकगांव ले गए। इस स्थान पर अभी भी ललिता देवी और अन्य गोपियों द्वारा भगवान कृष्ण की सेवा के लिए इस्तेमाल किए गए उनके कमल के पैरों और बर्तनों के निशान दिखाई देते हैं। कभी-कभी, सूरज की रोशनी में, उनके कमल के पैरों के निशान चमकते हैं।
ब्रज भूमि और वृंदावन सबसे लोकप्रिय स्थान हैं जहां धार्मिक रूप से ललिता सप्तमी मनाई जाती है। यह श्री कृष्ण और राधा रानी के लिए ललिता देवी के स्नेह का सबसे शुभ दिन है।
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