कोजागरी और शरद पूर्णिमा में क्या है समानता ?

punjabkesari.in Sunday, Oct 13, 2019 - 08:47 AM (IST)

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हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मिथिला में कोजागरा के रूप में मनाया जाता है। परंपरा में आर्थिक संपन्नता के लिए पूर्णिमा की रात भर जागे रहने का विधान है। नव विवाहित पुरुषों के लिए इस पर्व का विशेष महत्त्व होता है। ऐसा माना जाता है कि अगहन से लेकर आषाढ़ मास तक जिनकी शादी हुई होती है उनका कोजागरा आश्विन मास की पूर्णिमा की रात्रि में मनाया जाता है और इस बार ये पर्व आज यानि 13 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। 
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क्या होता है परंपरा
कोजागरा पर वधू पक्ष की ओर से दुल्हा सहित सभी सदस्यों के लिए नए वस्त्र और दही-चूड़ा, केला, मिठाई और मखाना आदि भेजा जाता है। कोजागरा पर्व में मखाना को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। दूल्हा पक्ष अपनी क्षमता अनुसार अपने समाज और गांव के लोगों को निमंत्रण देकर पान, सुपारी और मखाना से उनका स्वागत करते हैं। बता दें कि इस रात जागने के लिए पचीसी का खेल खेला जाता है और साथ ही साथ भजन संगीत का भी आयोजन किया जाता है। इसके अलावा मिथिला में कोजागरा पर्व पर नवविवाहित के आंगन में अरिपन बनाया जाता है। मान्यता है कि अरिपन बनाकर घर में लक्ष्मी के आगमन का इंतजार किया जाता है। शाम के समय लोक गीत के द्वारा धन की देवी लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है।
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महत्त्व 
किंवदंती है कि पूर्णिमा की रात चंद्रमा से जो अमृत की बूंदें टपकी वही मखाना का रूप ले लिया। मिथिला में ऐसी मान्यता है कि पान और मखाना स्वर्ग में भी नहीं मिलता है। इसलिए कोजागरा पर कम से कम एक मखाना और एक खिल्ली पान अवश्य खाना चाहिए।

मिथिला में कोजागरा पर्व पर प्रायः सभी घरों में लक्ष्मी पूजा की भी परंपरा है। इस दिन घर में रखी तिजोरी की पूजा की जाती है। लोग चांदी और सोने के सिक्कों को लक्ष्मी मानकर पूजा करते हैं।   


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