रिश्ते-नाते खत्म हो जाते हैं मृत्यु के साथ, काम आते केवल ऐसे कर्म

punjabkesari.in Monday, Jul 31, 2017 - 02:14 PM (IST)

एक बार देवर्षि नारद अपने शिष्य तुम्बुरु के साथ कहीं जा रहे थे। गर्मियों के दिन थे। एक प्याऊ से उन्होंने पानी पिया और पीपल के पेड़ की छाया में बैठे ही थे कि अचानक एक कसाई वहां से 25-30 बकरों को लेकर गुजरा। उनमें से एक बकरा एक दुकान पर चढ़कर घास खाने के लिए दौड़ पड़ा।

दुकान शहर के मशहूर सेठ शागाल्चंद सेठ की थी। दुकानदार का बकरे पर ध्यान जाते ही उसने बकरे के कान पकड़कर मारा। बकरा चिल्लाने लगा। दुकानदार ने बकरे को पकड़कर कसाई को सौंप दिया और कहा कि जब बकरे को तू काटेगा तो इसका सिर मुझे देना क्योंकि यह मेरी घास खा गया है। 

देवर्षि नारद ने जरा-सा ध्यान लगा कर देखा और जोर से हंस पड़े। तुम्बुरु पूछने लगा, ‘‘गुरुजी! आप क्यों हंसे? उस बकरे को जब मार पड़ रही थी तो आप दुखी हो गए थे, किन्तु ध्यान करने के बाद आप हंस पड़े, इसमें क्या रहस्य है?’’ 

नारद जी ने कहा, ‘‘यह तो सब कर्मों का फल है। इस दुकान पर जो नाम लिखा है ‘शागाल्चंद सेठ’, वह शागाल्चंद सेठ स्वयं यह बकरा था। यह दुकानदार शागाल्चंद सेठ का ही पुत्र है। सेठ मरकर बकरा हुआ है और इस दुकान से अपना पुराना सम्बन्ध समझकर घास खाने गया था। उसके बेटे ने ही उसको मारकर भगा दिया। 

मैंने देखा की 30 बकरों में से कोई दुकान पर नहीं गया। इस बकरे का पुराना संबंध था इसलिए यह गया। इसलिए ध्यान करके देखा तो पता चला कि इसका पुराना सम्बन्ध था। जिस बेटे के लिए शागाल्चंद सेठ ने इतना कमाया था, वही बेटा घास खाने नहीं देता और गलती से खा ली तो सिर मांग रहा है। पिता की यह कर्म गति और मनुष्य के मोह पर मुझे हंसी आ रही है।

तात्पर्य यह कि अपने-अपने कर्मों का फल तो प्रत्येक प्राणी को भोगना ही पड़ता है और इस जन्म के रिश्ते-नाते मृत्यु के साथ ही मिट जाते हैं, कोई काम नहीं आता। इसलिए अच्छे कर्म करने चाहिएं।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News