Inspirational Story- खुद को कमजोर समझने वालों का जीवन बदल देगी ये कथा
punjabkesari.in Thursday, May 20, 2021 - 11:25 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Context- एक चरवाहा जंगल में भेड़-बकरियां चराया करता था। घूमते-घूमते एक रोज उसे शेर का छोटा बच्चा मिला जिसने अभी आंखें भी नहीं खोली थीं। छोटा बच्चा सबको प्यारा लगता है। यह जानते हुए भी कि यह शेर का बच्चा है, उसे उठा लिया और भेड़ों का दूध पिलाने लगा। वह बच्चा धीरे-धीरे बढऩे लगा। भेड़ों के बच्चों के साथ खेलता, भेड़ों के साथ ही घास खाता। भेड़ों की तरह बोलता। अपने आपको भेड़ ही समझता।
अब बच्चा बड़ा हो गया था। एक रोज किसी दूसरे शेर ने भेड़ों के झुंड पर हमला कर दिया। सभी भेड़ें दौडऩे लगीं, शेर के उस बच्चे भी डरते-कांपते भेड़ों की तरह दौड़ते हुए देख कर हमलावर शेर को बहुत आश्चर्य हुआ।
उसने भेड़ों की ओर से ध्यान हटाया और उस शेर को ही पकड़ लिया और उसे समझाने लगा कि तू क्यों डरता है, तू तो खुद शेर है।
दूसरा शेर कहता है कि शेर तो जंगल का राजा होता है। उसकी दहाड़ से सभी जानवर कांपते हैं, मैं घास खाने वाला इतना शक्तिशाली शेर नहीं हो सकता। हमलावर शेर उसे पकड़ कर एक कुएं के पास ले गया। कुएं के अंदर उसे उसका चेहरा दिखाकर कहा, देख तेरा चेहरा मेरे जैसा है, तेरे पंजेे भी मेरे जैसे हैं। इसलिए तू भेड़ नहीं तू शेर हैं।
दूसरा शेर कहने लगा-ठीक है मेरा चेहरा तेरे चेहरे जैसा ही है मगर तू तो बहुत शक्तिशाली है। मेरी आवाज से तो कोई डरता भी नहीं। हमलावर शेर ने कहा-घास तेरी खुराक नहीं है, इसीलिए तू कमजोर है। उसे वह अपनी गुफा में ले गया और खाने को मांस दिया। कुछ दिन के बाद हमलावर शेर ने उसे दहाड़ मार कर दिखाई और उसे भी दहाड़ लगाने के लिए कहा। जब उसने दहाड़ लगाई तो इतनी जोरदार गर्जना हुई कि पूरा जंगल गूंज उठा। तब उसके सभी संशय दूर हो गए और वह निर्भय होकर जंगल में घूमने लगा।
उस शेर ने जैसे अपने को भेड़ मान रखा था। उसी तरह हम लोगों ने भी अपने-आपको अज्ञानी जीव मान रखा है। गुरु के कहने पर मान लेते हैं और चिंतन मनन करते हैं कि मैं शुद्ध ब्रह्म स्वरूप हूं। ऐसा चिंतन ही है हमारी शुद्ध खुराक।
ऐसा करते-करते जैसे-जैसे स्वरूप में स्थिति होती जाती है और पिंड रूपी शरीर के अंदर सोई हुई शक्ति शिवा जाग जाती है, तब उस शेर की तरह हमारे संशय दूर होने लगते हैं।
इस प्रकार यह शुद्ध अहं हमें मुक्ति के द्वार तक पहुंचा देता है। शक्ति अपने मूल स्वरूप शिव से मिलती है तब केवल अद्वितीय आत्मानंद के रस का अनुभव होता है। फिर न तो संसार बंधन रहता है और न दुख की ग्रंथि।