पितृ पक्ष में आने वाली एकादशी होती है इतनी खास, आप भी जानें इसका महत्व
punjabkesari.in Sunday, Sep 13, 2020 - 03:40 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि यानि आजि 13 सितंबर को इंदिर एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। यूं तो साल में पड़ने वाली प्रत्येक एकादशी का अपना अधिक महत्व है। परंतु श्राद्ध पक्ष में आने वाली एकादशी को विशेष महत्व प्राप्त है। इस दिन श्री हरि विष्णु जी की पूजा के साथ-साथ अपने पितरों का श्राद्ध आदि किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन ब्राह्माणों को भीजन करवाने से मृत परिजनों की आत्मा को शांति मिलती है तथा वह मोक्ष प्राप्त करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के शालिमग्राम रूप की पूजा की जाती है।साथ ही साथ ये भी कहा जाता है जो व्यक्ति जिन लोगों की आत्मा मरने के बाद भटकती रहती है अगर आज के दिन उनकी शांति के लिए श्राद्ध आदि के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाए तो उन्हें मोक्ष मिलता है। आइए जानते हैं क्या है इस एकादशी का महत्व-
बताया जाता है इस एकादशी तिथि की सबसे खास बात यही है कि ये पितृ पक्ष में पड़ती है। जिससे इस व्रत का महत्व अधिक बढ़ जाता है। पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है उसकी सातों पीढ़ियों तक के पितृ एक ही बार में तर जाते हैं। इतना ही नहीं व्रत करने वाले व्यक्ति को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। अन्य धार्मिक पुराणों तथा शास्त्रों में भी जो उल्लेख के अनुसार जितना पुण्य कन्यादान और हज़ारों वर्षों की तपस्या के बाद मिलता है, ठीक वहीं पुण्य की प्राप्ति कई अश्विन मास की इस एकादशी के दिन प्राप्त होता है।
इंदिरा एकादशी शुभ मुहूर्त-
एकादशी प्रारंभ: 13 सितंबर की सुबह 04 बजकर 13 मिनट पर।
एकादशी समाप्त: 14 सितंबर की सुबह 03 बजकर 16 मिनट तक।
पारण का समय: 14 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 59 मिनट से शाम 03 बजकर 27 मिनट तक।
विध-विधान से ऐसे करें व्रत-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर शालिग्राम की पूजा करने का विधान है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के संकल्प के साथ-साथ इस पितरों के तर्पण का भी संकल्प लेना चाहिए।
विधि विधान से इस दिन भगवान शालिग्राम की पूजा करना चाहिए, इस दौरान इन्हें पंचामृत से स्नान करवाकर, पूजा में इन्हें अबीर, गुलाल, अक्षत, यज्ञोपवित, फूल शामिल करने चाहिए। साथ ही साथ इनकी पूजा में तुलसी दल अर्पित करना बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए, बिना इसके श्री हरि पूजा स्वीकार नहीं करते। बल्कि इन्हें लगाए जाने वाले भोग में तुलसी दल होना अति आवश्यक माना जाता है।
इसके अतिरिक्त इस दिन से जुड़ी कथा सुननी चाहिए, श्रद्धाभाव से आरती का गुणगान करना चाहिए।
और आखिर में अन्य लोगों में पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन करवाएं तथा अपनी क्षमता अनुसार दान-दक्षिणा दें।
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