3 मई को खुल रहे हैं गंगोत्री धाम के कपाट, क्या है इस स्थल से जुड़ा धार्मिक रहस्य?

punjabkesari.in Wednesday, Apr 27, 2022 - 04:34 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
धार्मिक यात्राओं का सिलसिला आरंभ होने को है, जी हां, धीरे-धीरे धार्मिक यात्राएं शुरू होने वाली है। इन धार्मिक यात्राओं में केवल हिंदू धर्म की यात्राएं ही नहीं बल्कि अन्य धर्म यात्राएं भी शामिल हैं। हाल ही हम ने आपको अपनी वेबसाइट के माध्यम से न केवल अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है इस बारे में जानकारी दी, बल्कि अपने फेसबुक पर बाबा बर्फानी के प्रथम दर्शन भी करवाए। इसी कड़ी में अब हम आपको बताने जा रहे हैं उत्तराखंड में स्थित चार धामों में से एक, गंगोत्री के बार में। खबरों के अनुसार आने वाले 03 तारीख यानि 3 मई, दिन मंगलवार को गंगोत्री धाम के द्वार खुल रहे हैं। जी हां, भक्तों के लिए ये गंगोत्री में स्थित गंगा मंदिर के कपाट खुले जा रहे हैं। इस मंदिर को लेकर मान्यताएं प्रचलित हैं चूंकि गंगा नदी को राजा भगीरथ स्वर्थ से धरती पर लाए थे, इसलिए गंगोत्री में स्थित इस गंगा मंदिर में गंगा नदी के साथ राजा भगीरथ की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है। 

आइए जानते हैं गंगोत्री में स्थित इस धाम से जुड़ी अन्य जानकारी- 

बताया जाता है गोमुख से गंगा नदी निकलती है जो गंगोत्री से आगे बढ़ते हुए कई राज्यों और अन्य शहरों से होती हुई पश्चिम बंगाल में गंगासागर तट पर समुद्र में मिलती है। बात करें मंदिर की तो यहां केवल मुखबा गांव के सेमवाल ब्राह्माण ही पुजारी के रूप में मौजूद हैं। मंदिर समुद्र तल से लगभग 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री क्षेत्र के मत अनुसार यहां गंगा मां तो भागीरथी के नाम से जाना जाता है। 

गंगोत्री से लगभग 19 कि.मी की दूरी पर गोमुख ग्लेशियर स्थित है, जिसे गंगा नदी का मुख्य उद्गम स्थल माना जाता है। माना जाता है ये यात्रा बहुत कठिन है, जहां आसानी से पहुंचना मुश्किल माना जाता है। प्रचलित धार्मिक किंवदंतियों व कथाओं के अनुसार राजा भगीरथ ने गंगोत्री पर्वत क्षेत्र में ही एक चट्टान पर बैठकर शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने गंगा के वेग को अपनी जटाओं में धारण करने का वर दिया था। जिसके उपरांत गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं।

आइए जानते हैं गंगा नदी के धरती पर आगमन की कथा
बता दें क्योंकि गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई हैं, इसलिए धार्मिक शास्त्रों में गंगा को देवनदी भी कहा जाता है। गंगा धरती पर क्यों आई, इस संबंध में प्रचलित कथा है, जिसक अनुसार श्रीराम के पूर्वज राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि का अपमान कर दिया था। जिन पर क्रोधित हो कपिल मुनि ने राजा सगर के सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। जब उनका 
क्रोध शांत हुआ तब उन्होंने ने राजा सगर के पौत्र अंशुमन को बताया कि राजा के इन सभी मृत पुत्रों का उद्धार केवल गंगा नदी से ही हो पाना संभव है। 

कथाओं के अनुसार अंशुमन के पुत्र दिलीप थे और दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। जिन्होंने अपने पितरों की शांति के लिए तपस्या की थी। कहा जाता है तब भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी गंगा धरती पर अवतरण के लिए तैयार हुईं थी। 

परंतु गंगा का वेग बहुत तेज था। इसलिए इस केवल शिव जी ही धारण कर सकते थे, अतः इसे धारण करने के लिए भगीरथ ने शिव जी को प्रसन्न किया। जिसके बाद गंगा पृथ्वी पर आई और उनके जल से सगर के सभी पुत्रों का उद्धार हुआ था। 


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Content Writer

Jyoti

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