शास्त्रों से जानें, मंगलहर्ता विध्नहर्ता से जुड़ी ये अजब-गजब कथाएं

punjabkesari.in Tuesday, Aug 10, 2021 - 10:24 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Ganesh ji story: श्री गणेश ॐ के समान साक्षात ब्रह्मा स्वरूप हैं। जिस प्रकार ॐ के बिना सब मंत्र अधूरे हैं, उसी प्रकार विघ्नकर्ता भगवान गणेश की स्तुति के बिना सभी देवी-देवताओं का पूजन अधूरा है। इसलिए हर शुभ कार्य में गणेश जी अग्रपूज्य हैं। गणेश जी को वैदिक देवता की उपाधि दी गई है। कलिकाल के जीवों पर भगवान शंकर की असीम कृपा रही है। भोले बाबा ने इनके धैर्य की अधिक परीक्षा न लेते हुए उनके दारूण दुखों को शीघ्र से शीघ्र दूर करने के लिए पार्वती जी को माध्यम बनाकर भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के मध्याह्न के समय भगवान श्री गणेश की रचना की। गणेश जी को समस्त देवताओं में अग्रगण्य शत्रुहर्ता, रिद्धि-सिद्धि दाता, धन-धान्य, व्यवसाय व समृद्धि, बुद्धि, विद्या, बल के प्रदाता, नजर तंत्र के नाशक, रक्षक स्वरूप माना जाता हैं। गृहस्थ के कई विघ्न, बाधाएं दूर करने तथा अभिलाषित प्राप्तियों के लिए सिद्धि विनायक गणपति की 33 कोटि देवी-देवताओं में सर्वप्रथम पूजा की जाती है।

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Ganesh ji birth story in hindi: गणेश में गण का अर्थ है समूह और ईश का अर्थ है स्वामी अर्थात जो समस्त जीव जगत के ईश हैं वही गणेश हैं। स्कंद पुराण के अनुसार मां पार्वती ने अपने शरीर की उबटन की बत्तियों से एक शिशु बनाकर उसमें प्राणों का संचार कर गण के रूप में उन्हें द्वार पर बैठा दिया। भगवान शिव को द्वार में प्रवेश नहीं करने देने पर शिव और गण में युद्ध हुआ। भोले शिव ने गण का शीश काटकर द्वार के अंदर प्रवेश किया। 

Ganesh Ji ki Kahani: पार्वती जी ने गण को पुन: जीवित करने के लिए शिवजी से कहा। शिवजी ने एक हाथी के शिशु का सिर गणेश जी के मस्तक पर जोड़कर पुन: जीवित कर पुत्र रूप में स्वीकार किया। इसीलिए वह गजानन कहलाए।

इन्हें लाल रंग के फूल प्रिय है। फूल अर्पित किए बिना पूजा पूरी नहीं होती। फूल सुगंध एवं सौंदर्य के प्रतीक है। हम पूजा के दौरान भगवान को इसी भाव से फूल चढ़ाते हैं कि हमारा जीवन भी सुगंध और सौंदर्य से भरा हो। गणेश मंगल मूर्ति हैं, मंगल के प्रतीक हैं, मंगल करने वाले हैं। 

लाल रंग मंगल का प्रतीक है। गणेश पूजा में तुलसी-दल वर्जित है लेकिन दूर्वा चढ़ाई जाती है। गणेश विराट व्यक्तित्व वाले हैं लेकिन जिस तरह चूहा उनका वाहन है वैसे ही दूर्वाघास उन्हें पसंद हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि जितना बड़ा व्यक्तित्व होगा वह छोटे के प्रति भी अपनत्व का भाव रखेगा। लम्बे कान अधिक से अधिक सुनना, ज्ञान श्रवण करना, उसके उपरांत ही मनन कर, विचार कर बोलने का संदेश देते हैं। लम्बी नाक जीवन में सदा गर्व से जीने, प्रत्येक पग सूंघ-सूंघ कर, विचार कर धरने, सावधानी से जीवन यापन की द्योतक है। 

हर श्वास प्रभु सिमरन करते रहने, छोटी झुकी आंखें नम्रता, सहजता, दूरदर्शिता पर बल देती हैं। दीर्घ उदर (बड़ा पेट) सहनशीलता, सहिष्णुता, संतोष का प्रतीक है। उठा हुआ दायां हाथ सब जीवों पर सदा देव कृपा, दयावान रहने की शिक्षा देता है। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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