कोई बार-बार आपको भला-बुरा कहे, उसे मार्ग पर लाने के लिए अपनाएं ये दांव

punjabkesari.in Wednesday, Mar 01, 2017 - 03:16 PM (IST)

एक बार स्वामी दयानंद फर्रूखाबाद में गंगा तट पर ठहरे हुए थे। उनसे थोड़ी ही दूरी पर एक झोंपड़ी में एक दूसरा साधु भी रहता था। वह प्रतिदिन दयानंद की कुटिया के पास आकर उन्हें गालियां देता रहता और जब गालियां देकर थक जाता तो वापस अपनी कुटिया में चला जाता। दयानंद उसकी गालियां सुनते और मुस्कुरा देते लेकिन कोई उत्तर नहीं देते। एक दिन एक सज्जन ने फलों का एक बड़ा टोकरा स्वामी दयानंद के पास भेजा। स्वामी ने टोकरे से अच्छे-अच्छे फल निकालकर उन्हें एक साफ कपड़े में बांधा और एक व्यक्ति से बोले, ‘यह फल उस साधु को दे आओ जो प्रतिदिन यहां आकर अपनी कृपा मुझ पर बरसाता रहता है।’


वह सज्जन फल लेकर उस साधु के पास गए और जाकर बोले, ‘साधु बाबा! ये फल स्वामी दयानंद जी ने आपके लिए भेजे हैं।’


उस साधु ने दयानंद का नाम सुना तो सुनते ही लगा चिल्लाने, ‘अरे, यह प्रात:काल किसका नाम ले लिया तूने! पता नहीं अब, आज भोजन भी मिलेगा या नहीं। चला जा यहां से, ये फल जो लाया है, ये मेरे लिए नहीं, किसी दूसरे के लिए भेजे होंगे क्योंकि मैं तो प्रतिदिन उसे गालियां देता हूं। वह भला क्यों भेजेगा?’ 


उस व्यक्ति ने स्वामी के पास वापस आकर यही बात कही। दयानंद बोले, ‘तुम फिर उसके पास जाओ और कहना कि आप प्रतिदिन जो अमृत वर्षा करते हो, उसमें आपकी पर्याप्त शक्ति लगती है। ये फल इसलिए भेजे हैं कि इन्हें खाइए जिससे आपकी शक्ति बनी रहे और अमृत वर्षा में कमी न आए।’


शिक्षा: असभ्य को सभ्य रहकर ही जीता जा सकता है। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News