कल शनिदेव पर चढ़ाएं ये 1 चीज, आप पर मंडरा रहे हर संकट का डर होगा दूर

punjabkesari.in Monday, May 15, 2017 - 08:00 AM (IST)

एक बार की बात है। सूर्यास्त का समय था, शीतल मंद हवा बह रही थी। समुद्र का तट था। राम सेतु के समीप भक्तराज हनुमान अपने प्रभु भगवान राम के ध्यान में लीन थे, उसी समय वहां न जाने कहां से सूर्यपुत्र शनि आ गए। शनि देव को गर्व था कि वह जहां भी जाते हैं उनके भय से सभी देवतागण उनके मार्ग से हट जाते हैं तथा उनसे दूर ही रहना पसंद करते हैं। यहां उन्हें बड़ा आघात लगा कि उनके मार्ग में रामभक्त हनुमान ध्यान लगाए बैठे हैं तथा उनकी ओर देख भी नहीं रहे हैं। वह अपनी इस दशा को अपमान समझ रहे थे। उन्हें गर्व था कि इस सृष्टि में उनके समान बल वाला और कोई नहीं है तो यह वानर क्यों नहीं घबरा रहा है।


हनुमान जी के समीप पहुंच कर शनि देव ने अपने कर्कश स्वर में कहा, ‘‘मैं प्रख्यात शक्तिशाली शनि तुम्हारे सम्मुख हूं और तुम मेरी ओर देख भी नहीं रहे हो। मैं तुम्हें युद्ध के लिए आमंत्रण देता हूं।’’ 


इस पर पवनपुत्र हनुमान ने बड़ी विनम्रता से सूर्यपुत्र शनि को कहा—हे शनिदेव! मैं बहुत वृद्ध हो गया हूं और अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूं इसमें व्यवधान न डालें, कृपापूर्वक आप कहीं और चले जाएं। इस पर शनिदेव ने कहा, ‘‘मैं कहीं आकर लौटना नहीं जानता और जहां जाता हूं वहां मेरा ही वर्चस्व चलता है इसलिए मैं तुम्हें पुन: युद्ध के लिए ललकारता हूं।’’


यह कह कर उन्होंने हनुमान जी का हाथ पकड़ लिया। इस पर हनुमान जी ने झटक कर अपना हाथ छुड़ा लिया और पुन: उनको जाने के लिए कहा। परंतु शनि कहां मानने वाले थे, वह हनुमान जी को युद्ध करने के लिए उकसाते रहे। वह कहने लगे,‘‘ कहां गई तुम्हारी वीरता।’’ 


ऐसा कह कर पुन: हनुमान जी पर वह अपना बल प्रयोग करने लगे। ऐसा बार-बार करने पर हनुमान जी ने कहा हे शनि, तुम यहां से चले जाओ, मेरा अब राम सेतु की परिक्रमा का समय हो रहा है। अत: मैं तुमसे युद्ध नहीं कर सकता। इसके पश्चात भी जब शनिदेव नहीं माने तो पवनपुत्र हनुमान ने अपनी पूंछ लंबी कर उनको उसमें लपेटना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में शनिदेव उनकी पूंछ में बंध गए। अब पवनपुत्र राम सेतु की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। शनिदेव की सम्पूर्ण शक्ति से भी उनका बंधन शिथिल न हो सका। हनुमानजी के दौडऩे से उनकी विशाल पूंछ जिससे शनि देव जकड़े हुए थे वह शिलाखंडों पर गिरती जा रही थी जिससे शनि के शरीर में भारी चोटें लगने लगीं। 


कई बार हनुमानजी अपनी पूंछ को जानबूझ कर भी इन शिलाखंडों पर पटक देते थे, जिससे शनि देव को और पीड़ा हो रही थी। उनका शरीर लहूलुहान हो गया। वह असहाय थे, कुछ कर भी नहीं सकते थे क्योंकि उनका पूरा शरीर पूंछ में जकड़ा हुआ था।
अपनी इस दशा से पीड़ित होकर अब शनिदेव हनुमान जी से क्षमा याचना करने लगे कि उन्हें अब उनकी उद्दंडता का दंड मिल गया है। मुझे अपने बंधन से मुक्त कर दें, आगे वह कभी ऐसी गलती नहीं करेंगे।  इस पर हनुमानजी ने शनि से कहा, ‘‘यदि तुम मेरे भक्त की राशि पर कभी न जाने का वचन दो तो मैं तुम्हें मुक्त कर सकता हूं।’’ 


इस पर शनिदेव ने कहा, ‘‘हे महावीर, मैं वचन देता हूं कि मैं आपके भक्तों पर अपना दुष्प्रभाव कभी नहीं डालूंगा और न ही उनकी राशि पर आने पर उनको पीड़ित करूंगा।’’ 


ऐसा कहने पर हनुमान जी ने उन्हें बंधन मुक्त कर दिया। शनि देव का शरीर बुरी तरह से घायल हो चुका था। उनको बहुत पीड़ा हो रही थी। वह हनुमान जी के चरणों में पड़ कर अपनी देह पर लगाने के लिए तेल मांगने लगे। हनुमान जी ने उन्हें तेल दिया जिसे उन्होंने अपने पूर्ण शरीर में मला तथा कहा, ‘‘जो व्यक्ति मुझे तेल देगा मैं उसको कभी पीड़ित नहीं करूंगा और अपने आशीर्वाद से उसके जीवन में खुशियां भर दूंगा।’’


तभी से शनि को तेल चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है। कल बड़ा मंगलवार है, हनुमान जी का ध्यान करते हुए शनि देव पर तेल अर्पित करने से आप पर मंडरा रहा हर संकट होगा दूर एवं हर डर का होगा अंत। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News