जीवनकाल में जो व्यक्ति करता है ये काम, उसके कुल से सदा दूर रहते हैं यमराज

punjabkesari.in Thursday, May 18, 2017 - 10:08 AM (IST)

विष्णुरश्वतरो रभा सूर्यवर्चाश्च सत्यजित्। विश्वामित्रो महाप्रेत ऊर्जमासं  नयन्त्यमी।।।। 
भानुमंडलमध्यस्थं वेदत्रयनिषेवितम्। गायत्रीप्रतिपाद्यं तं विष्णुं भक्तया नमायहम्।।2।।


फाल्गुन मास में विष्णु सूर्य (आदित्य) के साथ उनके रथ पर विश्वामित्र ऋषि, रभा अप्सरा, सूर्यवर्चा गंधर्व, सत्यजित् यक्ष, अश्वतर नाग तथा महाप्रेत राक्षस रहते हैं। ऐसे भानुमंडल के मध्य में स्थित, तीनों वेदों द्वार सेवित तथा गायत्री द्वारा प्रतिपाद्य विष्णु आदित्य को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूं। विष्णु आदित्य छ: सहस्र रश्मियों से तपते हैं, उनका वर्ण अरुण है।


यमादित्य का माहात्य 
एक बार यमराज ने पाशदंड से युक्त अपने सेवकों को आदेश दिया कि ‘‘संसार के मूलभूत भगवान् सूर्य के भक्तों के नजदीक तुम लोग कभी मत जाना, क्योंकि उनके लिए यमलोक में स्थान नहीं है। संसार में जो सूर्य-भक्त हैं और जिनका हृदय उन्हीं में लगा हुआ है अथवा जो सूर्य देव की निरंतर पूजा करते हैं, तुम लोग उन्हें प्रणाम कर दूर से ही छोड़ देना। बैठते-सोते, चलते-फिरते जो मनुष्य भगवान् सूर्य देव के नाम का संकीर्तन करता है वह यमलोक में आने योग्य नहीं है। जो लोग भगवान भास्कर के लिए नित्य नैमित्तिक यज्ञ करते हैं उन्हें भी तुम लोग दृष्टि उठाकर मत देखना। यदि तुम लोग सूर्य-भक्तों का स्पर्श करने या उन्हें यमलोक लाने की चेष्टा करोगे तो तुम लोगों की गति रुक जाएगी। जो लोग पुष्प, धूप, दीप एवं सुंदर वस्त्रों से सूर्य देव की पूजा करते हैं, उन्हें भी तुम लोग मत पकडऩा, क्योंकि वे मेरे पिता के मित्र तथा आश्रित जनों के आश्रय हैं। सूर्य-मंदिर में सफाई करने वाले तथा उनके मंदिर का निर्माण करने वाले लोगों की तीन पीढिय़ों को तुम लोग छोड़ देना। जिन भगवद्भक्तों ने मेरे पिता भगवान् सूर्य की अर्चना की है, उनके कुल को भी तुम सदा दूर से ही त्याग देना।’’


महात्मा धर्मराज यम के इस प्रकार आदेश दिए जाने पर भी एक बार भूल से यमदूत उनके आदेश का उल्लंन करके सूर्य भक्त राजा सत्राजित के पास चले गए परंतु सत्राजित के तेज से यम के सेवक मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। यम ने उनका अपराध क्षमा कराने के उद्देश्य से काशी के यमादित्य की स्थापना करके कठोर तपस्या की। उसके फलस्वरूप भगवान् आदित्य ने प्रकट होकर उन्हें अनेक वरदान दिए। 


यमेश्वर से पश्चिम और आत्मवीरेश्वर से पूर्व संकटा घाट पर स्थित यमादित्य का दर्शन करने से मनुष्यों को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता। भौमवारी चतुर्दशी को स्नान कर यमेश्वर और यमादित्य का दर्शन करने वाला मानव सब पापों से मुक्त हो जाता है। यमराज द्वारा स्थापित यमेश्वर और यमादित्य को प्रणाम करने वाले को यमलोक की यातनाओं का भोग तो दूर, उन्हें यमलोक देखना तक नहीं पड़ता। इसके अतिरिक्त यमतीर्थ में श्राद्ध करके तथा यमादित्य का पूजन करके मनुष्य पितृऋण से भी उऋण हो जाता है।


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