प्रेरक प्रसंग: मुक्ति तो, मुक्ति से ही मिलती है
punjabkesari.in Wednesday, Dec 01, 2021 - 05:51 PM (IST)
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सुबह-सवेरे ही वह अपनी दुकान सजा लेता। भक्तजन सुबह ही तो मंदिर में ज्यादा संख्या में आते हैं। पैदल मार्ग होने के कारण दुकान के लिए थोड़ी-सी जगह बचती जहां वह अंगूठियां, मालाएं, तोते वाला पिंजरा और लाल कवर वाले डायरीनुमा कार्ड रखता। पिंजरे में रखा तोता भाग्यफल निकाल कर हर ग्राहक को उसकी राशि के अनुसार बताता। ग्राहक के नाम का उच्चारण सुनते ही वह कार्ड चोंच में पकड़ कर पलट-पलट कर एक तरफ रखता और जो सही नाम राशि होती उसी कार्ड को दुकानदार की तरफ बढ़ाता। तोते वाला भाई झट से चने की दाल का एक दाना, जो उसने पहले ही तैयार रखा होता, तोते की तरफ सरका देता। मुझे तोते की विद्या और उसके ज्ञान पर बड़ा अचरच हुआ।
अक्सर मंदिर के उस मार्ग पर मेरा आन-जाना रहता और तोते की विद्या देख मेरे कदम भी बरबस रुक जाते। एक दिन मैंने तोते वाले भाई से पूछ ही लिया कि आपको विशेष प्रजाति का यह तोता कहां से मिला?
तोते वाले के कहे शब्द मुझे आज भी याद हैं।
उसने कहा था, ‘‘भाई, हीरा हर कहीं नहीं मिलता। तलाशना पड़ता है और उसके बाद तराशने पर ही वह बेशकीमती बनता है। मैंने ही इसे यह सब सिखाया है, अत: अब यह मेरे कहे अनुसार ही अपने ज्ञान से ज्योतिषी वाला काम करता है।’’
‘‘क्या यह कभी इस पिंजरे से मुक्त होगा?’’
पूछने पर तोते वाला बोला, ‘‘मुक्ति तो, मुक्ति से ही मिलती है। इस तोते से मेरा लेन-देन का संबंध है। जब पूरा होगा तभी यह ज्ञानी तोता आजाद होगा।’’
‘‘लेकिन इसका मन भी तो उड़ने को करता होगा?’’
‘‘जरूर करता है लेकिन खाया है तो लौटाना तो पड़ेगा।’’
‘‘पर इसका हिसाब कौन रखेगा?’’
‘‘वही जो हम सबका रखता है।’’
तोता बार-बार अपनी आवाज अलग-अलग ढंग से निकालने लगा। इतने में एक अन्य ग्राहक आ पहुंचा। तोते को पिंजरे से बाहर आने का इशारा किया गया। एक आज्ञाकारी बालक की तरह तोते ने अपना काम किया और इधर-उधर टहलने लग पड़ा। इस बार न तो उसने दाना उठाया और न ही पिंजरे के अंदर जाने को मुड़ा। ‘छोड़-छोड़, ट्रें-ट्रें’ की आवाज निकालते हुए पंख फडफ़ड़ाने लग पड़ा।
अभी हम एक-दूसरे की ओर देख ही रहे थे कि तोता फुर्र से उड़ गया और पास के पेड़ की ऊंची टहनी पर बैठ कर ‘टुकर-टुकर पूरा हुआ हिसाब’ की आवाज निकालता रहा।
पिंजरे से वह ज्ञानी तोता मुक्ति पा चुका था। पिंजरे वाला भाई अगली सुबह फिर तोते की तलाश में निकल चुका था। —रोशन लाल पराशर