Dharmik Concept: विदूषकों और पागलों पर नाराज होने का कोई लाभ नहीं

punjabkesari.in Thursday, Nov 11, 2021 - 05:36 PM (IST)

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एक बार महाराज कृष्णदेव राय किसी बात को लेकर तेनालीराम से नाराज हो गए। क्रोध में उन्होंने तेनालीराम से कह दिया कि कल दरबार में अपना मुंह मत दिखाना, यदि ऐसा किया तो भरे दरबार में कोड़े लगवाए जाएंगे। उस समय तो तेनालीराम चला गया।

दूसरे दिन जब महाराज दरबार की ओर बढ़ रहे थे, तभी एक चुगलखोर राजदरबारी ने उन्हें रास्ते में ही यह कह कर भड़का दिया कि तेनालीराम आपके आदेश के विरुद्ध दरबार में उपस्थित है और तरह-तरह की हरकतें करके सबको हंसा रहा है।

बस यह सुनते ही महाराज आग बबूला हो गए, ‘‘उसकी इतनी जुर्रत।’’

‘‘बड़ा ही ढीठ है महाराज...।’’

उनके साथ-साथ चलते हुए चुगलखोर दरबारी बोला, ‘‘आपने साफ-साफ कहा था कि दरबार में कोड़े पड़ेंगे, इसकी भी उसने कोई परवाह नहीं की। अब तो महाराज के हुक्म की भी इस तरह से अवहेलना करने लगा है।’’

जैसे-जैसे वह भड़काता जा रहा था, वैसे-वैसे महाराज के कदमों में तेजी आती जा रही थी। वह दरबार में पहुंचे।

देखा कि मुंह को मिट्टी के एक घड़े से ढंक कर तेनालीराम तरह-तरह की हरकतें कर रहा है। घड़े पर चारों ओर कुछ न कुछ बना हुआ था, कहीं जानवरों के मुंह, कहीं कुछ तो कहीं कुछ।

‘‘तेनालीराम! यह क्या बेहूदगी है?’’ 

क्रोध से थर-थर कांपते हुए महाराज बोले, ‘‘तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन करने की हि मत कैसे की। दंडस्वरूप कोड़े खाने को तैयार हो जाओ।’’

‘‘मैंने कौन-सी आपकी आज्ञा नहीं मानी महाराज?’’ 

घड़े में मुंह छिपाए-छिपाए ही तेनालीराम बोला, ‘‘आपने कहा था कि कल मैं दरबार में अपना मुंह न दिखाऊं। क्या आपको मेरा मुंह दिख रहा है? हे भगवान! कहीं कु हार ने फूटा घड़ा तो नहीं दे दिया।’’

यह सुनते ही महाराज की हंसी छूट गई। वह बोले, ‘‘सच है विदूषकों और पागलों पर नाराज होने का कोई लाभ नहीं, अब इस घड़े को हटाकर सीधी तरह अपना आसन ग्रहण करो।’’


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Content Writer

Jyoti

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