इस दिन है कार्तिक मास की सबसे खास मानी जाने वाली एकादशी, जानिए क्या करने से मिलेगा लाभ

punjabkesari.in Sunday, Nov 07, 2021 - 02:03 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ 
सनातन धर्म के धार्मिक ग्रंथों व शास्त्रों के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली तमाम एकादशी तिथियों में से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का खास महत्व माना जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं है देवोत्थान एकादशी की। पंचांग के अनुसार इस बार देवउठनी एकादशी 15 नवंबर को पड़ रही है। तो वहीं कुछ जगहों पर ये तिथि 14 नवंबर को भी मनाई जाएगी। शास्त्रों में इसे देवउठनी, देवोत्थान, देव प्रभोदिनी आदि नामों से भी जाना जाता है। ज्योतिष मान्यता है कि इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश, जातकर्म संस्कार आदि समस्त प्रकार के मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। आइए जानते हैं इस दिन व्रत रखने से जातक को किस तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। 

धर्म ग्रंथों में बताया गया है देवोत्थान एकादशी व्रत रखने वाले जातक के अशुभ संस्कार नष्ट होते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

चूंकि कार्तिक मास में इस तिथि को शालीग्राम और तुलसी माता का विवाह संपन्न करवाया जाता है, इसलिए इस दिन तुलसी पूजा का अधिक महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन इनकी पूजा से तथा व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता, साथ ही साथ पितृदोष से भी राहत मिलती है। 

इस दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु व अपने अपने इष्ट देव की उपासना करने का महत्व है। ऐसा करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ज्योतिष बताते हैं इस दिन जितना हो सके व्यक्ति को "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः" मंत्र का जाप करना चाहिए। 

जिस व्यक्ति की कुंडली में चंद्र ग्रह कमजोर हो उसे ऐसी स्थिति में देवोत्थान एकादशी के शुभ अवसर पर जल और फल खाकर या निर्जल एकादशी का उपवास जरूर रखना चाहिए। ऐसा कहा जाता है जो व्यक्ति वर्ष भर की समस्त एकदशियों में उपवास रखता है उसकी कुंडली में से चंद्र की स्थिति सहीग हो जाती है जिसे परिणाम स्वरूप मानसिक स्थिति में सुधार होता है। 

देवउठनी एकादशी के दिन इससे संबंधित पौराणिक कथा का श्रवण या वाचन जरूर करना चाहिए। ऐसा मत है कि इस कथा को सुनने या कहने वाले जातक को पुण्य की प्राप्ति होती है।

धार्मिक शास्त्रों में इस एकादशी को अधिक महत्व प्राप्त है, कहा जाता है कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने वाले जातक को हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है।

जिस व्यक्ति की कुंडली में पितृदोष हो, उसे भी इस दिन श्री हरि को समर्पित व्रत विधि पूर्वक करना चाहिए। कहा जाता है यह उपवास पितरों के लिए करने से अधिक लाभ मिलता है। विशेषकर कहते हैं कि इससे पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पाते हैं।

इसके अतिरिक्त देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने वाले जातक का भाग्य जागृत होता है। सनातन धर्म के पुराणों में बताया गया है जो व्यक्ति श्रद्धा विश्वास से एकादशी का व्रत करता है, उसके जीवन के संकटों का नाश होता है तथा उसके घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। य
 से नहीं घिरता और उनके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।


 


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Content Writer

Jyoti

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