पुण्यतिथि- ''The Nightingale of India'' के नाम से प्रसिद्ध रही सरोजिनी नायडू

punjabkesari.in Monday, Mar 02, 2020 - 09:37 AM (IST)

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भारत कोकिला सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था। पिता अघोरनाथ प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री एवं कुशल वैज्ञानिक थे। इनकी माता वरदासुंदराजी एक कुशल गृहिणी तथा कवियत्री थीं। इन्हें अपने माता-पिता द्वारा ही कविता सृजन की प्रेरणा प्राप्त हुई थी। पिताश्री विज्ञान कालेज के संस्थापक तथा रसायन वैज्ञानिक होने के नाते इन्हें कुशल वैज्ञानिक बनाना चाहते थे तथा अंग्रेजी और गणित विषय में निष्णात करना चाहते थे।  बाल्यावस्था में ही सरोजिनी जी ने कविता लेखन शुरू कर दिया। केवल 13 वर्ष की आयु में ही 1300 पदों की ‘झील की रानी’ कविता रच डाली। अंग्रेजी भाषा में भी अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए 2000 पंक्तियों का एक नाटक उन्हीं दिनों लिखा। परिवार में रहकर सरोजिनी बंगला और तेलुगू भाषा भी सीख गईं। 

PunjabKesari Death anniversary of Sarojini Naidu 

बहुभाषाविद् होने के कारण राजनीति में प्रवेश के बाद वे अंग्रेजी, हिंदी, बंगला, गुजराती, तेलुगू भाषा में अपने भाषण से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करती थीं। उच्च शिक्षा इन्होंने पहले लंदन के किंग्स कालेज तथा बाद में कैम्ब्रिज के पार्टन कालेज में प्राप्त की। बाद में भारत आकर साहित्य सेवा में संलग्र हो गईं। इनके तीन कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। काव्य सृजन की दृष्टि से इनका इंगलैंड और भारत में विशेष ख्यातनाम था।

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सरोजिनी जब 1898 में इंगलैंड से लौटीं तब डा. एम. गोविंदराजलु नायडू के साथ विवाह हो गया। साहित्य के क्षेत्र में सरोजिनी जी की अभूतपूर्व देन रही। वह असहाय, गरीब और श्रमिक वर्ग के प्रति बड़ी ही संवेदनशील रहीं। मातृभूमि को दासता से मुक्त करने के लिए सदैव स्वप्र संजोती रहीं और मानव मात्र के कल्याण हेतु प्रयत्नशील रहीं। सरोजिनी जी का व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक तथा विनोदप्रिय था। गोपाल कृष्ण गोखले से उनकी मित्रता रही, वे भी भारत भूमि को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना चाहते थे। सरोजिनी को राष्ट्रसेवा में प्रत्यक्षत: संलग्र करने में गोखले जी की अभूतपूर्व प्रेरणा रही। सन् 1914 में नायडू जी का लंदन में गांधी जी से सम्पर्क हुआ, तभी से वे  पूर्णत: राजनीति में अपने कदम बढ़ाने के लिए तत्पर हुईं। राष्ट्रीय गतिविधियों में भारत लौटने के बाद ही सक्रिय हो गईं। उस समय वह राष्ट्रीय कांग्रेस तथा महात्मा गांधी के प्रति निष्ठावान रहीं। राष्ट्रीय जागरण की दृष्टि से सरोजिनी ने गांवों की महिलाओं तथा विद्यार्थियों और युवाओं को आम संभाओं में संबोधित करते हुए उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाओं को प्रगाढ़ता प्रदान की। 

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सरोजिनी जी बड़ी निर्भीक वक्ता थीं। उनका मनोबल बड़ा अनुकरणीय था। अस्वस्थ रहते हुए भी वे निरंतर जोश और उत्साहपूर्वक कार्य करती रहीं। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद सरोजिनी जी को उत्तरप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया। सरोजिनी नायडू कुशल राजनेता के साथ ही नारी शक्ति की प्रबल समर्थक मानी गई हैं। वह महिला उत्पीडऩ के लिए आवाज उठाते हुए नारी समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहीं। सामाजिक रूढिय़ों, अशिक्षा, दूषित परम्पराओं को दूर करने के लिए वह कटिबद्ध थीं। स्त्रियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करते हुए अपनी क्षमताओं का बोध कराती रहीं। सरोजिनी जी अखिल भारतीय महिला परिषद से जुड़ीं और इस संस्था से निरंतर अपना संबंध बनाए रख कर सक्रिय योगदान देती रहीं। 

नारी सशक्तिकरण हेतु सक्रिय रहने के कारण अखिल भारतीय महिला परिषद के नई दिल्ली स्थित कार्यालय का नाम भी ‘सरोजिनी हाऊस’ रखा। नारी चेतना की दृष्टि से किए गए सरोजिनी जी के कार्यों को हमेशा याद किया जाएगा। राजनीतिक और सामाजिक दायित्वों के अलावा भी सरोजिनी जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे कुशल वक्ता होने के साथ ही गीत-संगीत में विशेष रुचि रखती थीं। उनकी वकृत्व कला मनमोहक थी। विनोदप्रियता उनकी रग-रग में समाई हुई थी। वह अत्यधिक संवेदनशील होते हुए भी साहसी और श्रमनिष्ठ महिला थीं। देश की युवा पीढ़ी की प्रगति के लिए वह सदैव तत्पर रहीं।  वाणी और व्यवहार से नायडू जी स्नेह की प्रतिमूर्ति थीं। रबीन्द्रनाथ टैगोर और सी.एफ. एन्ड्रयूज उनके अच्छे मित्रों में थे। नेहरू जी को तो वह अपने छोटे भाई के समान ही समझती थीं। देवी स्वरूपा भारत कोकिला 2 मार्च, 1949 को राज्यपाल के पद पर रहते हुए स्वर्ग सिधार गईं।


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Niyati Bhandari

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