नंद वश को किस नीति से किया था चाणक्य ने परास्त?

punjabkesari.in Thursday, Apr 16, 2020 - 10:40 AM (IST)

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आचार्य चाणक्य के बारे में हर कोई जानता है कि इन्होंने प्राचीन काल में अपने ज्ञान की सहायता से ना केवल दुनिया में अपना नाम और उसका पाया बल्कि इन्हीं की नीतियों तथा ज्ञान के दम पर चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश पर विजय पाई। इसके अलावा अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको समय-समय पर इन की नीतियों के बारे में बताते रहते हैं जो इनके द्वारा लिखित नीति शास्त्र में वर्णित है। परंतु आज हम जो आपको बताने वाले हैं वह जानकारी पिछली सभी नीतियों आदि से कुछ अलग है।
PunjabKesariजी हां जैसे कि हमने आपको ऊपर बताया कि एक शिक्षक वर्ग कुशल राजनीतिज्ञ के नाम से जाना जाता था। लेकिन बहुत कम लोग हैं जो नंद वंश व इनसे जुड़े रहस्य के बारे में जानते हैं।

तो चलिए जानते हैं दूरदर्शी राजनेता के रूप में मौर्य साम्राज्य का संस्थापक और संरक्षक कहे जाने वाले  आचार्य चाणक्य के नंद वंश से जड़े इस किस्से के बारे में, जिन्हें उनकी विद्वता, निपुणता और दूरदर्शिता के कारण कौटिल्य नाम भी दिया गया।

कहा जाता है चाणक्य उन लोगों में से एक हैं जिन्होने सर्व प्रथम एकछत्र भारत की कल्पना की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर चाणक्य एक बार नाराज़ हो जाते थे तो उनके क्रोध की अग्नि से बच पाना असंभव के समान दिखता था।

आइए जानते हैं किस बात पर चाणक्य नंद वंश के राजा से हो गए थे क्रोधित-
कथाओं की मानें तो मगध राज्य में किसी यज्ञ का आयोजन किया गया था। जिसमें चाणक्य भी पहुंचे और जाकर एक प्रधान आसन पर बैठ गए। वहां मौजूद महाराज नंद ने उन्हें आसन पर बैठे देख चाणक्य की वेशभूषा को लेकर उनका अपमान कर दिया और उन्हें आसन से उठने का आदेश दे दिया। जिस से  क्रोधित होकर चाणक्य ने पूरे सभा के बीच नंदवंश के राजा से बदला लेने की प्रतिज्ञा ले ली थी।
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इतना ही नहीं उन्होंमने उनके द्वारा किए गए अपमान के जवाब में कहां, “व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर बैठता है, ऊंचे स्थान पर बैठने से कोई भी ऊंचा नहीं हो जाता है।”

ऐसा कहा जाता है अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए ही आचार्य चाणक्य ने एक साधारण से बालक राजकुमार चंद्रगुप्त को शिक्षा दीक्षा देकर सम्राट की गद्दी पर बिठाया था।

नंद वश से बदला लेने के लिए किस नीति का किया था प्रयोग-
बताया जाता है चाणक्य ने अपने अपमान के समय मौन रहना ही उचित समझा और बदले की आग को अपने भीतर सजोकर रखा। अगर आज के समय में भी अगर कोई अपमानित करे तो चुप रहें, तो इससे अच्छा कुछ नहीं होता। बल्कि अपमानित व्यक्ति को चाहिए कि ऐसे लोगों की तरफ देखकर केवल मुस्करा दें। जिससे वह खुद ही अपमानित महसूस करने लगे।

बताया जाता है कि चाणक्य नें उन्होंने पोरस को अपने साथ लिया और भी कई देश के राजाओं को मिलाकर घनानंद पर आक्रमण कर दिया। उनका मानना था कि देश को आगे बढ़ाने के लिए दूसरे देशों से संबंध मजबूत करना बहुत अहम है। आचार्य चाणक्य ने जासूसों की एक बड़ी सेना बनाई जो मगध के अंदर की खबर लाकर उन्हें देते थे। उनके अनुसार कभी भी शत्रु के बारे में गुस्से से नहीं सोचना चाहिए क्योंकि इससे आपकी विश्लेषण की क्षमता खत्म हो जाती है। महान ऋषि वात्सायन के भेष में चाणक्य कई जगह कथा सुनाते थे जिसके दौरान वो लोगों को चंद्रगुप्त की सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करते रहते थे।
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Jyoti

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