गुण व रूप में अंतर करने के लिए ध्यान रखें आचार्य चाणक्य की सीख

punjabkesari.in Tuesday, Mar 14, 2017 - 09:29 AM (IST)

सम्राट चंद्रगुप्त देखने में सुंदर और गोरे थे जबकि चाणक्य काले और कुरूप। एक बार दोनों में नीति संबंधी बहस हो रही थी। चंद्रगुप्त चाणक्य के किसी भी प्रश्र का संतोषजनक उत्तर नहीं दे पा रहे थे। इसलिए उन्होंने अचानक प्रसंग बदलते हुए कहा, राज्य के सभी लोग आपकी विद्वता और सूझ-बूझ का लोहा मानते हैं लेकिन यदि भगवान ने आपको सौंदर्य प्रदान किया होता तो विश्व में आपका कोई विकल्प नहीं होता।’ 


चाणक्य समझ गए कि चंद्रगुप्त को अपने सौंदर्य का अभिमान हो गया है। चाणक्य ने सोचा कि इसका जवाब दिया जाए। चंद्रगुप्त को हमेशा पीने के लिए पानी स्वर्ण पात्र में दिया जाता था। चाणक्य ने एक सेवक से मिट्टी के बर्तन और स्वर्ण पात्र दोनों में अलग-अलग जल लाने को कहा। सेवक ने दोनों पात्रों में जल भर कर चौकी पर रख दिया। थोड़ी देर बाद चंद्रगुप्त को प्यास लगी। चाणक्य ने मिट्टी के बर्तन वाला जल पीने के लिए बढ़ा दिया।


पानी पीने के बाद चंद्रगुप्त ने पूछा, ‘आज जल का स्वाद बदला हुआ है, ऐसा क्यों।’ 


चाणक्य ने कहा कि क्षमा करें, भूल से आपको मिट्टी के बर्तन वाला जल पेश कर दिया गया। उन्होंने तुरंत स्वर्ण पात्र का जल आगे बढ़ाया। चंद्रगुप्त ने उसे भी पिया। चाणक्य ने पूछा, ‘राजन इन दोनों पात्रों के जल में बेहतर कौन सा था।’ 


चंद्रगुप्त ने कहा, ‘मिट्टी के पात्र का जल बहुत मीठा और ठंडा था। अब हमेशा उसी पात्र में मुझे जल दिया जाए।’


चाणक्य मुस्कुरा कर बोले, ‘राजन जिस प्रकार पात्र की सुंदरता जल को शीतल और मीठा नहीं बनाती, वैसे ही शरीर की सुंदरता व्यक्ति को ज्ञानी और विद्वान नहीं बना देती। सुंदरता या कुरूपता से ज्ञान का आकलन करना उचित नहीं होता।’ चंद्रगुप्त उनका आशय समझ गए। उन्होंने चाणक्य से क्षमा मांगी।


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