Chaitra Navratri 2020: स्कंदमाता बनाएंगी बुद्धिमान और स्वस्थ

punjabkesari.in Sunday, Mar 29, 2020 - 07:45 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

शास्त्रों के अनुसार माता दुर्गा के स्वरूप ‘स्कंद माता’ की नवरात्रि के पांचवें दिन पूजा की जाती है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बनकर तपस्या करने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। तदनन्तर स्कंद उनके पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। ये भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं। स्कंद शब्द से अभिप्राय: स्कंद हमारे जीवन में ज्ञान और (धर्मी) कार्रवाई के एक साथ आने का प्रतीक है। देवी स्कंदमाता की कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कन्द का अर्थ है शिव पार्वती पुत्र कुमार कार्तिकेय अर्थात जो भगवान स्कन्द कुमार की माता है वही है देवी स्कंदमाता। 

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शास्त्रानुसार देवी स्कंदमाता ने अपनी ऊपर वाली दाएं भुजा से भगवान कार्तिकेय को गोद में लिया हुआ है। नीचे वाली दाईं भुजा में कमल पुष्प का वरण किया हुआ है। ऊपर वाली बाएं भुजा में जगत तारन हेतु हैं। नीचे वाली बाएं भुजा में कमल पुष्प है। देवी स्कंदमाता का वर्ण पूर्णत: शुभ्र (मिश्रित) है। इन्हें “पद्मासना देवी” और “विद्यावाहिनी दुर्गा” कहकर भी संबोधित किया जाता है। शास्त्रानुसार इनकी सवारी सिंह के रूप में वर्णित है|

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दोपहर अभिजीत महूर्त में उत्तरमुखी होकर पूजा घर में सफ़ेद-हरे मिश्रित रंग का प्रिंटेड कपड़ा बिछाएं। पूजा में कुशा से बने आसन का उपयोग करें। प्रिंटेड कपड़े पर चावल और मूंग मिलाकर ढेरी बनाएं और ढेरी पर देवी स्कंदमाता का चित्र स्थापित करें। हाथ में जल लेकर संकल्प करें तथा हाथ जोड़कर देवी का ध्यान करें 

ध्यान: सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।।

घी का दीपक करें। चंदन से धूप करें। देवी पर सफ़ेद कनेर के फूलों को चढ़ाएं। इन्हें मूंग से बने मिष्ठान का भोग लगाएं। हरे रंग की कांच की चुड़ियां चढ़ाएं। पान इलायची चढाएं तत्पश्चात बाएं हाथ में सुपारी लेकर दाएं हाथ से चार मुखी रुद्राक्ष अथवा हरे हकीक अथवा हरे क्रिस्टल की माला से देवी के मंत्र का जाप करें।

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मंत्र: ह्रीं स्त्रीं ब्रीं स्कंदमाता देव्यै नमः।।

मंत्र जाप के बाद सुपारी संभाल कर अपने पास रखें तथा ज़रूरत पड़ने पर सुपारी को पानी में डुबोकर पानी का सेवन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। इनकी उपासना से मंदबुद्धि व्यक्ति को बुद्धि और चेतना प्राप्त होती है। इनकी कृपा से ही रोगियों को रोगों से मुक्ति मिलती है तथा समस्त कष्टों का अंत होता है। 

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Niyati Bhandari

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