Chaitra Amavasya 2020ः नहीं जानते होंगे आप इस कथा के बारे में

punjabkesari.in Monday, Mar 23, 2020 - 11:45 AM (IST)

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हिंदू पंचागं के अनुसार चैत्र अमावस्या का दिन बहुत ही खास होता है। इसके बाद से ही नवरात्रि का पर्व शुरू हो जाता है। वैसे तो हर महीने में अमावस्या तिथि आती है लेकिन चैत्र माह में आने वाली इस तिथि का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है। इसके साथ ही हिंदूओं का नया साल शुरू हो जाता है। माना जाता है कि अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। बहुत से लोग इस दिन से जुड़ी कथा के बारे में नहीं जानते होंगे। आज हम आपको इसकी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार एक नगरी में एक राजा राज करता था। उसकी प्रजा और परिवार के लोग सुखी थे। राजा की रानी बहुत ही धार्मिक विचारो की थी। राजा के महल के सामने ही एक साहूकार की हवेली थी।राजा और साहूकार की पत्नी में आपस में घनिष्ठ मित्रता थी। एक बार साहूकार की हवेली से उसकी पत्नी की रोने की आवाज आने लगी। इसके बाद रानी ने राजा से इसका कारण पूछा तो राजा ने कहा कि सेठ का पुत्र मर गया है। इस पर रानी ने कहा कि महाराज दुख क्या होता है जो सेठ की पत्नी रो रही है। इस पर राजा न कहा कि जब तुम्हारा बेटा मरेगा तब तुम्हें पता चल जाएगा। इसके बाद रानी ने अपने बेटे को महल से नीचे फेंक दिया। लेकिन भगवान की कृपा से वह बच गया। 
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रानी ने फिर राजा से पूछा कि दुख क्या होता है ? तब राजा ने कहा कि पड़ोसी राज में युद्ध हो रहा है मैं भी उस युद्ध में अकेला जाऊंगा। जब तुम मेरे मरने का समाचार सुनोगी तब तुम्हें पता चलेगा। लेकिन रानी अमावस्या का व्रत करती थी। जिसकी वजह से राजा उस युद्ध को जीतकर वापस आ गया। 
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इसके बाद राजा ने रानी से कहा कि अब हम गंगा मां के दर्शन करने जाएंगे। तब मैं वहां जाकर गंगा नदी में कूद जाऊंगा तब तुम्हें दुख का पता चलेगा। भगवान शिव कैलाश पर बैठकर यह सब देख रहे थे। उन्होंने माता पार्वती से कहा कि आज मैं तुम्हें सुखी आत्मा के दर्शन करवाऊंगा। जिसके बाद भगवान शिव ने बकरे और माता पार्वती ने बकरी का रूप धारण कर लिया। वह एक बावली के पास घास चरने लगे। रानी ने जब उस बावली को देखा तो उसने कहा कि हम यहीं पर विश्राम करेंगे। रानी ने भगवान शिव और माता पार्वती की बाते सुन ली जिसमें भगवान शिव माता पार्वती को कह रहे थे कि रानी ने अमावस्या का व्रत किया है। इसलिए इसे इस जन्म में कोई दुख नहीं मिलेगा। जिसके बाद रानी को सबकुछ समझ आ गया। उसने यह बात राजा को भी बताई और वह मिलकर अमावस्या का व्रत करने लगे। 


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