Ayodhya: श्री राम यात्रा मार्ग के प्रति ‘हमारा दायित्व’

punjabkesari.in Sunday, Mar 21, 2021 - 04:10 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हमारी सांस्कृतिक रक्षा तभी होगी जब श्री राम स्थलों की रक्षा कर पाएंगे। दशकों से श्री राम यात्राओं पर शोध करते हुए अनुभव हो रहा था कि ये स्थल भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं। हमारी संस्कृति के प्रहरी इन स्थलों का किसी एक ग्रंथ में विवरण नहीं मिलता है। इसी प्रकार मेरी जानकारी में कोई ऐसे स्थल, पुस्तकालय, संग्रहालय आदि नहीं हैं जहां इनकी समग्र जानकारी मिल सके।

कुछ स्थल तो बहुत ही सीमित क्षेत्र में जाने जाते हैं और कुछ स्थल विलुप्त होने के कगार पर हैं। मैं समझता हूं कि श्री राम का यात्रा विवरण हमारे पूर्वजों ने लोक कथाओं, लोक गीतों, लोक नाटकों तथा जन श्रुतियों के माध्यम से अभी तक सहेज कर रखा है। फिर भी कुछ स्थान विलुप्त हो गए हैं।

हमारी स यता व संस्कृति पर अनेक प्रकार से प्रहार होते रहे हैं। ऐसी विकट स्थिति में ये स्थल हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखने में सफल रहे हैं किन्तु शास्त्रों के अनुसार ‘धर्मों रक्षाति रक्षित:’। हमारी सांस्कृतिक रक्षा तभी होगी जब हम सब इनकी रक्षा कर पाएंगे। मैं समझता हूं कि इनकी रक्षा का सरलतम उपाय है, इनका प्रचार व जागरूकता।

यात्राएं : अयोध्या जी से जनकपुर तथा अयोध्या जी से रामेश्वरम तक अनेक बार यात्राएं आयोजित की गई हैं। कुछ युवा संतों ने तो पूरे मार्ग पर साइकिल से यात्रा की है। जितने भी अधिक भक्त जन यात्रा पर जाएंगे इन स्थलों का महत्व बढ़ेगा।

राम वाटिका : प्रयास है कि सभी स्थलों पर कुछ पेड़ लगाए जाएं तथा उन्हें स्थानीय स्तर पर श्री राम वाटिका के नाम से प्रसिद्ध किया जाए।

विश्वामित्र मार्ग : जिस मार्ग से विश्वामित्र जी श्री राम लक्ष्मण जी को ले गए वह विश्वामित्र मार्ग घोषित हो तथा पक्का बने।

श्री राम जानकी मार्ग : अयोध्या से जनकपुर तक प्राचीन श्री राम जानकी मार्ग को पक्का बनाया जाए। प्रदेश सरकार ने पूर्व में यह कार्य आरंभ किया था किन्तु अभी वह मार्ग पुन: बनाने की आवश्यकता है। बिहार सरकार से सीता मढ़ी तक का मार्ग ठीक करवाने का निवेदन है।

श्री राम वन गमन पथ : अयोध्या जी से रामेश्वरम तक सभी स्थलों को छूते हुए श्री राम वन गमन पथ का निर्माण होना चाहिए। आस-पास तो मार्ग बना हुआ है, आवश्यकता कुछ संपर्क मार्ग बनाने की है। यदि इसके लिए केंद्र सरकार तथा संबंधित राज्य सरकारें कदम उठाएं तो भारतीय पर्यटन उद्योग को बहुत लाभ होगा।

पेड़ों की कतारें : विश्वामित्र मार्ग, श्री राम जानकी मार्ग तथा श्री राम वन गमन पथ पर दोनों ओर पेड़ों की कतारें लगें। यदि मार्ग का निर्माण हो जाए तो स्थानीय जनता के सहयोग से यह कार्य सरल हो जाएगा।

श्रीराम संग्रहालय : प्रमुख शहरों में रामायण कालीन संस्कृति तथा विश्व व्यापी राम संस्कृति की झलक मिले।

हमने पता नहीं कैसे-कैसे संग्रहालय  बनाए हैं किन्तु भारतीयों के रोम-रोम में बसे श्री राम का संग्रहालय अभी तक नहीं है।

श्रीराम चरण चिन्ह : पूज्य संत  प्रभुदत्त जी ब्रह्मचारी द्वारा प्रकाशित श्री राम चरणों के स्वरूप संगमरमर पर बनवाए हैं उनमें सभी चिन्ह बने हैं। इतना ही नहीं उनमें सभी 290 स्थलों की पावन रज भी भरी है। संस्थान के चरण चिन्ह सभी 290 स्थलों पर स्थापित करवाने का कार्य आरंभ है।

श्री राम स्मृति स्तंभ : संकल्प है कि सभी 290 स्थलों पर श्री राम स्मृति स्त भ लगवाए जाएं जो 1000 वर्षों तक इन स्थलों की स्मृति बनाए रखें। स्तंभों पर हिन्दी, अंग्रेजी तथा स्थानीय भाषा में विवरण रहेगा।

जानकी मंदिर जनकपुर (दूधमती) जनकपुर नेपाल
जनकपुर नेपाल का एक प्रांत है। यहां राजा जनक की राजधानी थी। भारतीय सीमा से लगभग 20 कि.मी. दूर नेपाल में मां जानकी का एक भव्य मंदिर है। समस्त क्षेत्र में इस स्थल के लिए अगाध श्रद्धा है। इस क्षेत्र की जनता आज भी श्री राम को दूल्हा रूप में ही देखती है, बाल, वनवासी अथवा राजा उन्हें अधिक नहीं भाता। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 1/50, 51, 66, 67, 70, 71, 72, 73 तथा 1/74/1 से 7 मानस 1/211/ 2 से 1/342/3 तक सभी दोहे चौपाई आदि)

धनुषा मंदिर, धनुषाधाम (बाल गंगा) धनुषा नेपाल
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था। धनुष के टुकड़े चारों ओर फैल गए थे। उनमें से कुछ टुकड़े यहां भी गिरे थे। मंदिर में अब भी धनुष के अवशेष पत्थर के रूप में माने जाते हैं। लोक मान्यता के अनुसार दधीचि की हड्डियों में वज्र, सारंग तथा पिनाक नामक धनुष बने थे। वज्र इंद्र को सारंग (विष्णु जी) श्री राम तथा पिनाक शिवजी का था जो धरोहर के रूप में जनक जी के पास रखा हुआ था। यही पिनाक श्री राम ने तोड़ा था। (ग्रंथ उल्लेख :  वा.रा. 1/67/17, 19,20 मानसा 1/260/3 से 1/261/1)

रंगभूमि जनकपुर (दूधमती) जनकपुर-नेपाल
जानकी मंदिर के पास एक विशाल मैदान है। लोक मान्यता के अनुसार इसी मैदान में देश-विदेश के बलशाली राजाओं के बीच शंकर जी का पिनाक धनुष तोड़ कर श्री राम ने सीता जी से विवाह की शर्त पूर्ण की थी। श्री राम चरित मानस में भी इसे रंगभूमि कहा है। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 1/67/12 से 18 मानस 1/223/1 से 1/224/3, 1/239/2 से 1/267 दोहा)


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Content Writer

Jyoti

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