गीता व्याख्या: सकाम कर्म का फल शीघ्र

punjabkesari.in Wednesday, Jul 08, 2015 - 11:24 AM (IST)

काङ्क्ष्न्त: कर्मणां सिङ्क्षद्ध यजन्त इह देवता:।

क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा।।12।।

काङ्क्षन्त:—चाहते हुए; कर्मणाम—सकाम कर्मों की; सिद्धिम— सिद्धि; यजन्ते—यज्ञों द्वारा पूजा करते हैं; इह—इस भौतिक जगत में; देवता:—देवतागण; क्षिप्रम—तुरंत ही; हि—निश्चय ही; मानुषे—मानव समाज में; लोके—इस संसार में; सिद्धि—सिद्धि, सफलता; भवति—होती है; कर्म-जा—सकाम कर्म से।

अनुवाद : इस संसार में मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, फलस्वरूप वे देवताओं की पूजा करते हैं। नि:संदेह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है। 

तात्पर्य : इस जगत के देवताओं के विषय में भ्रांत धारणा है और विद्वत्ता का दम्भ करने वाले अल्पज्ञ मनुष्य इन देवताओं को परमेश्वर के विभिन्न रूप मान बैठते हैं। वस्तुत: ये देवता ईश्वर के विभिन्न रूप नहीं होते, किन्तु वे ईश्वर के विभिन्न अंश होते हैं। ईश्वर तो एक है, किन्तु अंश अनेक हैं।

वेदों का कथन है-नित्यो नित्यानाम्। ईश्वर एक है। ईश्वर: परम: कृष्ण:। कृष्ण ही एकमात्र परमेश्वर हैं और सभी देवताओं को इस भौतिक जगत का प्रबंध करने के लिए शक्तियां प्राप्त हैं। ये देवता जीवात्माएं हैं (नित्यानाम्) जिन्हें विभिन्न मात्रा में भौतिक शक्ति प्राप्त है। वे कभी परमेश्वर -नारायण, विष्णु या कृष्ण के तुल्य नहीं हो सकते। जो व्यक्ति ईश्वर तथा देवताओं को एक स्तर पर सोचता है, वह नास्तिक कहलाता है। 

यहां तक कि ब्रह्मा तथा शिवजी जैसे बड़े-बड़े देवता भी परमेश्वर की समता नहीं कर सकते। वास्तव में भगवान की पूजा ब्रह्मा तथा शिव जैसे देवताओं द्वारा की जाती है। (शिव विरिञ्चिनुतम्)। तो भी आश्चर्य की बात यह है कि अनेक लोग मनुष्यों के नेताओं की पूजा उन्हें अवतार मान कर करते हैं। इह देवता: पद इस संसार के शक्तिशाली मनुष्य या देवता के लिए आया है, लेकिन नारायण, विष्णु या कृष्ण जैसे भगवान इस संसार के नहीं हैं। वे भौतिक सृष्टि से परे रहने वाले हैं।

श्रीपाद शंकराचार्य तक मानते हैं कि नारायण या कृष्ण इस भौतिक सृष्टि से परे हैं। फिर भी लोग देवताओं की पूजा करते हैं, क्योंकि वे तत्काल फल चाहते हैं। उन्हें फल मिलता भी है, किन्तु वे यह नहीं जानते कि ऐसे फल क्षणिक होते हैं और अल्पज्ञ मनुष्यों के लिए हैं।

बुद्धिमान व्यक्ति कृष्णभावनामृत में स्थित रहता है। उसे किसी तत्काल क्षणिक लाभ के लिए किसी तुच्छ देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती। इस संसार के देवता तथा उनके पूजक, इस संसार के संहार के साथ ही विनष्ट हो जाएंगे।  देवताओं के वरदान भी भौतिक तथा क्षणिक होते हैं। यह भौतिक संसार तथा इसके निवासी जिनमें देवता तथा उनके पूजक भी सम्मिलित हैं, विराट सागर में बुलबुलों के समान हैं किन्तु इस संसार  में मानव समाज क्षणिक वस्तुओं के पीछे पागल रहता है- यथा सम्पत्ति, परिवार तथा भोग की सामग्री।

ऐसी क्षणिक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए लोग देवताओं की या मानव समाज के शक्तिशाली व्यक्तियों की पूजा करते हैं। यदि कोई  व्यक्ति किसी राजनीतिक नेता की पूजा करके सरकार में मंत्री पद प्राप्त कर लेता है, तो वह सोचता है कि उसने महान वरदान प्राप्त कर लिया है। इसलिए सभी व्यक्ति तथाकथित नेताओं को साष्टांग प्रणाम करते हैं, जिससे वे क्षणिक वरदान प्राप्त कर सकें और सचमुच उन्हें ऐसी वस्तुएं मिल भी जाती हैं।

(क्रमश:)


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