जीवन में हमेशा हर रास्ते पर शांति चाहते हैं, भगवान बुद्ध की इस सीख पर करें अमल

punjabkesari.in Saturday, May 13, 2017 - 02:56 PM (IST)

एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। उनके प्रिय शिष्य आनंद ने भगवान बुद्ध से रास्ते में सवाल किया, ‘‘भगवान—जीवन में पूर्ण रूप से शांति कभी भी नहीं मिल पाती। कुछ उपाय बताएं जिससे जीवन में हमेशा हर रास्ते पर शांति का अहसास हो।’’ 


बुद्ध आनंद का सवाल सुनकर मुस्कुराते हुए बोले, ‘‘तुम्हें हम इसका जवाब जरूर देंगे लेकिन इस वक्त हमें बहुत प्यास लगी है, पहले थोड़ा जल पी लें। क्या तुम हमारे लिए पानी लेकर आओगे?’’


आनंद भगवान बुद्ध का आदेश पाकर पानी की खोज में चल दिए। काफी देर तक तलाशने के बाद उन्हें एक झरना नजर आया। झरने के करीब पहुंचते ही आनंद ने देखा कि बहुत सारी बैलगाडिय़ां वहां से गुजर रही हैं। बैलगाडिय़ां गुजरने के बाद आनंद ने झील को देखा तो पाया कि झील का पानी काफी गंदा हो गया है। वह गंदे पानी को देखकर परेशान हो गए। उसने दूसरी जगह पर भी पानी तलाशा लेकिन उस जगह को छोड़ कर कहीं पर भी पानी नहीं मिला। वह निराश होकर वापस लौट आए।


आनंद बोले, ‘‘भगवान मैं पानी लेने तो गया था, लेकिन वहां से काफी सारी बैलगाडिय़ां गुजरीं जिस वजह से वहां पानी गंदा हो गया। इसलिए मैं बिना पानी लिए ही लौट आया। मैंने कुछ दूसरी जगहों पर भी पानी तलाशने की कोशिश की लेकिन मुझे असफलता ही हाथ लगी थी। दोबारा दूसरी झील की तलाश करता हूं। जहां पर साफ पानी हो।’’ 


यह कह कर आनंद जाने के लिए मुडऩे लगे तभी भगवान बुद्ध की आवाज सुनकर रुक गए। बुद्ध बोले, ‘‘दूसरी झील तलाश करने की जरूरत नहीं। उसी झील पर जाओ।’’ 


आनंद दोबारा उसी झील पर गए लेकिन अभी भी झील का पानी साफ नहीं हुआ था और कुछ पत्ते आदि उस पर तैर रहे थे। आनंद दोबारा वापस आकर बोले, ‘‘झील का पानी अभी भी गंदा है।’’ 


बुद्ध ने उसे कुछ देर बाद फिर उसी झील पर जाने को कहा। कुछ देर ठहर कर जब आनंद झील पर आए तो देखा कि झील का पानी बिल्कुल साफ था। सब सड़े-गले पत्ते नीचे बैठ चुके थे। काई सिमट कर दूर जा चुकी थी और पानी आइने की तरह चमक रहा था। आनंद इस बार प्रसन्न मन से झील का साफ पानी लेकर लौटे। भगवान बुद्ध पानी पीकर बोले, ‘‘आनंद जो काम अभी तुमने किया तुम्हारे सवाल का जवाब उसी में छिपा है।’’


यह सुनकर आनंद हैरानी से बोले, ‘‘भगवान मैं कुछ समझा नहीं।’’ 


बुद्ध बोले, ‘‘आनंद हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाडिय़ां रोज-रोज गंदा करती हैं और हमारी शांति भंग करती हैं। कई बार हम इनसे डर कर जीवन से भाग खड़े होते हैं लेकिन यदि हम भागें नहीं और मन की झील के शांत होने का इंतजार करें तो सब कुछ साफ हो जाता है।’’


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