21 हजार वर्ष के जैन पंचांग निर्माता थे प्रधानाचार्य श्री सोहन लाल जी म.

punjabkesari.in Thursday, Jul 09, 2020 - 06:39 PM (IST)

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बराड़ा : कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री सोहन लाल जी म. संपूर्ण भारत वर्षीय स्थानक वासी जैन परम्परा के मूर्धन्य आचार्य शिरोमणि रहे हैं। अपने अप्रतिम ज्ञानबल, गहन साधना, योगबल, संयम बल तथा अहर्निश स्वाध्याय लीनता के बल पर जहां अपने स्वयं के जीवन को तपाया व निखारा, वहीं सन 1933 वृहत अजमेर सम्मेलन में एक स्वर से समस्त संप्रदायों के महान आचार्यों ने अपना प्रधानाचार्य स्वीकार करके आपका अभिनंदन किया। ये प्रथम जैन आचार्य हैं जिन्होंने जैन आगम संवत 21 हजार वर्ष के जैन पंचांग का मौलिक निर्माण किया था। ये सफल भविष्यवक्ता और वचन सिद्ध महापुरुष रहे हैं।

इनका इस धरती पर 9 जनवरी सन 1849 रविवार माघवदि एकम सम्बडियाल, जिला स्यालकोट (वर्तमान पाकिस्तान में) शाह मथुरा दास (गादिया) जैन व श्रीमती लक्ष्मी देवी दम्पति के यहां अवतरण हुआ था। शैशवावस्था लाड़-प्यार से व्यतीत हुई तथा किशोरावस्था में लौकिक शिक्षा से जीवन को संस्कारित किया। विनम्रता, सत्यता, शौर्यता व स्पष्टवादिता जैसे नैतिक गुणों से जीवन को संवारा। एक बार बाल मित्रों के साथ खेलते हुए आपके हाथ से गेंद उछलकर हवेली के अंदर चली गई और कमरे में लगा ‘पक्षाघात दर्पण’ टूट गया जिसमें देखने मात्र में अधरंग ठीक हो जाया करता था। स्पष्टï कहा दंड मुझे दीजिए पिताजी, सेवकों को नहीं। ऐसी अनेक घटनाएं इनके जीवन की है जो इनके विलक्षण व्यक्तित्व को दर्शाती हैं।

इन्होंने पसरूर शहर से अमृतसर पहुंचकर जैन आचार्य श्री अमर सिंह जी म. के चरणों में मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी सोमवार 21 दिसम्बर सन 1875 को जैन भागवती दीक्षा में स्वयं को मंडित कर लिया। दीक्षा पश्चात आप श्री पंडित रत्न श्री धर्मीचंद जी म. के शिष्य घोषित किए गए। आपके विद्या गुरु आचार्य श्री अमर सिंह जी म. व जीवन निर्माता पंडित श्री धर्मीचंद जी म. के कठोर अनुशासन से अनुशासित होकर आपने स्वयं को तप, त्याग, स्वाध्याय, ध्यान व योग साधना के द्वारा संवारा। आप की अनुपम ज्ञान संपदा व उत्कट संयम साधना से प्रभावित होकर पंजाब जैन आचार्य श्री मोती लाल जी म. ने 7 अप्रैल सन 1895 चैत्र शुक्ला त्रोयदशी रविवार के दिन लुधियाना में पंजाब धर्म संघ के युवाचार्य पद से सुशोभित किया तथा एक आदेश दिया कि ‘‘हम अभी तक भारतीय ज्योतिष के अनुसार चल रहे हैं। आप मेधावी संत रत्न हैं। जैन आगमों के (सूय प्रज्ञप्ति व चंद्र प्रज्ञप्ति आगम) आधार पर जैन पंचांग का निर्माण करें।’’

आचार्य देव की आज्ञा को शिरोधार्य करके कठोर तपश्चरण के साथ रात-दिन प्रबल पुरुषार्थ के बल पर चंद्र ग्रह आदि नक्षत्रों का सूक्ष्म अध्ययन करके आपने 21 हजार वर्ष के जैन पंचांग का निर्माण कर दिया।

आचार्य श्री मोती लाल जी म. के पश्चात आप पंजाब संघ के भाग्य विधाता बने। मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टïमी, वीरवार 16 दिसम्बर सन 1901 पटियाला में बड़े समारोह के मध्य चतुर्वध धर्म संघ ने आपको आचार्य पद की प्रतीक चादर भेंट की। अपने उत्तम आचार, मधुर व कुशल व्यवहार, अप्रतिम ज्ञान व दूरदर्शिता के बल पर पंजाब धर्म संघ का चहुंमुखी विकास किया और अनेक प्रांतों में विचरण करके भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रचार व प्रसार किया। लाखों व्यक्तियों के जीवन को संवारा।

वृद्धावस्था के कारण 30 वर्ष लगातार अमृतसर जैन समाज की विनती पर आपने स्थिरवास किया। शुचित, निस्पृहता पूर्वक संयमी जीवन जीते हुए मृत्यु का आभास होते ही आपने आषाढ़ शुक्ल षष्ठïी रविवार 7 जुलाई 1935 को संथारा, संलेखना समाधि पूर्वक दसम द्वार से प्राणों का विसर्जन करके भौतिक देह का त्याग कर दिया। जहां आपका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ अर्थात दुर्गयाना शिवपुरी (श्मशानघाट) में तत्कालीन जैन समाज ने आपकी याद में कमरे का निर्माण करवाया और माल मंडी जी.टी. रोड पर एक विशाल स्मारक का निर्माण भी सम्पन्न हुआ, जिसका जीर्णोद्धार कार्य डा. साध्वी श्री अर्चना जी महाराज के कुशल नेतृत्व में चल रहा है।
—सुभाष मुनि


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Jyoti

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