‘राहुल गांधी अध्यादेश न फाड़ते तो प्रदीप चौधरी की बच जाती सदस्यता’

punjabkesari.in Saturday, Jan 30, 2021 - 07:31 PM (IST)

चंडीगढ़, (पांडेय): वर्ष 2013 में तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार के समय सुप्रीम कोर्ट केे फैसले के खिलाफ लाए गए अध्यादेश को यदि कांग्रेस नेता राहुल गांधी न फाड़ते तो कालका के कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी की सदस्यता रद्द होने से बच जाती है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत ने बताया कि जुलाई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट के लिली थॉमस निर्णय के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यू.पी.ए.-2 सरकार एक अध्यादेश लेकर उक्त निर्णय को पलटना चाहती थी और केंद्रीय कैबिनेट ने इस सम्बन्ध में एक अध्यादेश को मंजूरी भी दे दी थी, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उस अध्यादेश की कॉपी को कम्पलीट नॉनसैंस करार करते हुए खारिज कर फाड़ दिया था।

 

इसके बाद तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उक्त अध्यादेश पर ऐतराज जताया था एवं उस समय के केंद्रीय कानून मंत्री को अपने पास बुलाकर स्पष्टीकरण मांगा था। हालांकि अक्तूूबर, 2013 में मनमोहन सिंह सरकार ने इस अध्यादेश को वापस लेने का निर्णय ले लिया था। अगर राहुल गांधी वह अध्यादेश को न फाड़ते और वह कानून बन जाता, तो आज कांग्रेसी विधायक प्रदीप चौधरी की विधानसभा सदस्यता बच सकती थी। बशर्ते सुप्रीम कोर्ट उस संशोधन अध्यादेश/कानून पर रोक न लगा देती या उसे भी असंवैधानिक करार न कर देती। 


एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि 10 जुलाई, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के अनुसार, जिसे सुप्रीम कोर्ट के एक  संवैधानिक बेंच द्वारा मनोज नरूला बनाम भारत सरकार द्वारा सितम्बर, 2014 में सही ठहराया गया के अनुसार अगर किसी मौजूदा सांसद या विधायक को किसी कोर्ट द्वारा लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा (1), (2) एवं  (3)  में  दोषी घोषित किया जाता है तो उन्हें धारा (4) में  अपने पद के कारण किसी प्रकार की विशेष रियायत प्राप्त नहीं होगी एवं उन्हें अपनी संसद या विधानसभा, विधान परिषद सदस्यता से तत्काल हाथ धोना पड़ता है। 


हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जुलाई, 2013 के निर्णय से पहले ऐसे दोषी घोषित सांसदों/विधायकों को उक्त कानून की धारा 8 (4) में तीन माह की समय अवधि की  रियायत मिल जाती थी जिस दौरान वह ऊपरी अदालत में अपील या रीविसंन याचिका दायर कर उनको दोषी घोषित करने वाले निचली अदालत के फैसले के विरूद्ध स्टे प्राप्त कर लेते थे एवं इस प्रकार उनकी सदन की सदस्यता बच जाती थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्यसभा के तत्कालीन कांग्रेसी सांसद राशिद मसूद और राष्ट्रीय जनता दल के सांसद लालू प्रसाद यादव को अपनी लोकसभा सदस्यता से हाथ धोना पड़ा था। चूंकि दोनों को अलग-अलग मामलों में संबंधित कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में दोषी घोषित कर अलग-अलग वर्षों के लिए कारवास की सजा सुनाई गई थी। जबकि पंजाब विधानसभा में मौजूदा कांग्रेसी विधायक नवजोत सिंह सिद्धू  को सुप्रीम कोर्ट ने  धारा 323 आई.पी.सी (उपहति/चोट पहुँचाना) के तहत दोषी घोषित कर मात्र 1000 रुपए का जुर्माना लगाया था, लेकिन दो वर्षों से कम सजा होने के कारण उनकी सदस्यता बच गई थी। 
 


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Vikash thakur

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