कार्डियोजेनिक शॉक में मरीजों की मृत्यु दर पहले के मुकाबले हुई कम

punjabkesari.in Monday, Oct 14, 2019 - 01:47 PM (IST)

चंडीगढ़ (पाल)  : कार्डियोजेनिक शॉक में मरीजों की मृत्यु दर पहले के मुकाबले कम हो रही है। पी.जी.आई. एडवांस कॉर्डियक सैंटर में हुई एक रिसर्च में यह सामने आया है। हालांकि पहले इसकी दर ज्यादा हुआ करती थी लेकिन एक्सर्पट्स   द्वारा बीमारी को जल्द डायग्नोस करने के साथ ही इसको पहले से बेहतर ट्रीट किया जा रहा है। 

 

पी.जी.आई. एडवांस कॉर्डियक सैंटर के एच.ओ.डी.  डॉ. यशपाल शर्मा ने बताया कि यह अब तक का एकमात्र रिसर्च है जिसमें कार्डियोजेनिक शॉक और मैकेनिकल कॉम्लीकेशन को-मोरब्लीटीज के साथ एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम के रोगी के अलावा सोसायटी के हर स्टेट्स के मरीज इसमें शामिल थे। 

 

रिसर्च इतने एडवांस लेवल पर हुई है कि इसे दुनिया भर के हार्ट स्पैशलिस्ट सराहा रहे हैं।  डिपार्टमैंट ने इस रिसर्च के लिए साल 2009 से अब तक कार्डियोजेनिक शॉक वाले रोगियों में डाटा क्लैक्ट कर रहा है जिसके आधार पर यह नई दर सामने आई है। 


 

सेन फ्रांसिस्को में आयोजित टी.सी.टी. में पहुंचे डॉ. शर्मा
प्रो. यशपॉल शर्मा सैन फ्रांसिस्को में आयोजित टी.सी.टी. में बतौर गैस्ट फैकल्टी के रूप में पहुंचे। जहां उन्होंने एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम और कार्डियोजेनिक शॉक- मृत्यु दर द चेंजिंग सिनारियो को लेकर एक सैशन दिया। इसके अलावा उन्होंने मैकेनिकल कॉम्प्लीकेशंस एनीमिया, सेप्सिस, रीनल फेल्योर, अर्रिथमिया, फ्रैलिटी शॉक डायबिटीज, हाइपोथायरायडिज्म एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम और कार्डियोजेनिक शॉक को लेकर अपना एक्सपीरियंस भी शेयर किया। 

 

 दूसरे अंगों को प्रभावित करता है कार्डियोजेनिक शॉक 
कई मामलों में में हार्ट अटैक इतना जान लेवा नहीं होता लेकिन इसके साथ अगर कार्डियोजेनिक शॉक की समस्या भी हो जाए, तो यह गंभीर समस्या हो सकती है। हार्ट जब ब्लड को पंप करने की शक्ति खो देता है, तो फिर ऑक्सीजन युक्त ब्लड नहीं मिल पाने की वजह से किडनी, लिवर और शरीर के दूसरे सभी जरूरी अंग भी अपना काम सही से नहीं कर पाते।  

 

इसका इफैक्ट हार्ट के साथ दूसरे अंगो पर पड़ता है। इस स्थिति में लंग्स से हार्ट में पहुंचने वाला ऑक्सीजन युक्त ब्लड वापिस लंग्स में आने लगता है। जिससे मरीज को सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है और ब्लड प्रेशर अचानक कम हो जाता है।

 

हार्ट अटैक के मरीजों में  10 प्रतिशत मामले कार्डियोजेनिक शॉक से संबंधित
डाक्टर कार्डियोजेनिक शॉक को जितनी जल्दी डायग्नोस कर इलाज शुरू करेगा। उतना ही मरीज को लाइफ रिस्क को खतरा कम हो जाता है। शॉक की पहचान होते ही सबसे पहले इंट्रा-एऑर्टिक बैलून पंप से ब्लड की पंपिंग की व्यवस्था की जाती है। यह बैलून पंप एक उपकरण है, जिसे हार्ट की मेन आर्टरी के अंदर डाल दिया जाता है। फिर सर्जरी या एंजियोप्लास्टी के जरिए दिल की पंपिंग क्षमता ठीक की जाती है। उसके बाद बैलून पंप को निकाल दिया जाता है।


 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

pooja verma

Recommended News

Related News