चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ुआं में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने किया इंटरनैशनल लॉ कांफ्रैंस का शुभारंभ

punjabkesari.in Saturday, May 07, 2022 - 09:31 PM (IST)

चंडीगढ़,(नियामियां): विकास की चाहत में मनुष्य ने प्रकृति को बहुत नुक्सान पहुंचाया है, जिसके प्रतिकूल परिणाम आज हम भुगत रहे हैं। यह बात देश के उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी घड़ुआं में ‘पर्यावरण विविधीकरण और पर्यावरण न्यायशास्त्र’ के विषय पर आयोजित इंटरनैशनल लॉ कॉन्फ्रैंस का उद्घाटन करने के दौरान कही। इस दौरान उन्होंने  जलवायु परिवर्तन से निपटने और पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘जन आंदोलन’ का आह्वान किया, जिसमें हर नागरिक अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। कॉन्फ्रैंस में पंजाब के राज्यपाल और प्रशासक यू.टी. चंडीगढ़ बनवारीलाल पुरोहित भी बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। 


गौरतलब है कि पर्यावरण संरक्षण से संबंधित महत्वपर्ण वैश्विक विषयों में भारत द्वारा तय किए गए लक्ष्यों की प्राप्ति का रोडमैप और आगामी दिशा निर्धारित करने के लिए आयोजित कॉन्फ्रैंस में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस संजय कृष्ण कौल, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस बी.आर.गवई, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और एन.जी.टी. के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार, राज्य उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश सहित श्रीलंका, नेपाल, ब्राजील और मलेशिया सहित 20 देशों के न्यायाधीश, जैव विविधता और पर्यावरण न्यायशास्त्र के विशेषज्ञों और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने पर्यावरण से जुड़े विषयों पर बातचीत की। इस दौरान 4000 छात्र उपस्थित रहे। इस अवसर पर चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के चांसलर स. सतनाम सिंह संधू विशेष तौर पर मौजूद रहे। 

 


इकोसिस्टम का संरक्षण हमारे डी.एन.ए. में है 
एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि हमारी प्राचीन सभ्यता ने हमें हमेशा प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना सिखाया है और इकोसिस्टम का संरक्षण हमारे डी.एन.ए. में है, जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत पूरी दुनिया को मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है।  उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कुछ सिर्फ  सरकारों पर नहीं छोड़ा जा सकता, लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है।  उन्होंने गांधी जी के शब्दों को दोहराते हुए कहा कि ‘प्रकृति के पास मनुष्य की आवश्यकता के लिए पर्याप्त है लेकिन उसके लालच के लिए नहीं’।  

 


आई.पी.सी.सी. ए.आर.-6 रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यदि हम अब भी इस दिशा में त्वरित कार्रवाई नहीं करते हैं, तो आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन और घातक रूप धारण करने वाला है। यह रिपोर्ट बताती है भले ही देश उत्सर्जन को कम करने के अपने वादों का पालन करें, फिर भी 21वीं सदी के दौरान ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्र्री सैल्सियस से अधिक हो जाएगी। वर्षों से पर्यावरणीय न्याय को कायम रखने के लिए भारतीय उच्च न्यायपालिका की सराहना करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि निचली अदालतों को भी एक पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहिए और अपने निर्णयों में स्थानीय आबादी और जैव विविधता के सर्वोत्तम हितों को रखना चाहिए।

 


 उन्होंने कहा कि भारत में आज पर्यावरण संरक्षण के लिए 200 से अधिक कानून बने हैं। केवल कानून पारित करना ही पर्याप्त नहीं है, इन कानूनों को ईमानदारी से लागू करना और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। आज हमें लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है। जब तक पर्यावरण संरक्षण जन आंदोलन नहीं बनेगा, हमारा भविष्य अंधकारमय रहेगा। उन्होंने इस तरह के सम्मेलनों के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमें विश्व स्तर पर एक-दूसरे से सीखना होगा और दुनिया भर से सबसे अच्छी प्रथाओं को अपनाना होगा।

 

 

ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी संबोधित करने की आवश्यकता : बनवारी लाल
राज्यपाल पंजाब और प्रशासक यू.टी. चंडीगढ़ बनवारी लाल पुरोहित ने कहा कि एन्वायरनमैंट लॉ पर आयोजित यह सम्मेलन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें न केवल राष्ट्रीय स्तर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तुरंत संबोधित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन हमारी प्राचीन परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमारे शास्त्रों ने हमें हमेशा जानवरों और प्रकृति के रिश्ते का संतुलन सिखाया है। हमारे पास क्षमता और जिम्मेदारी है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें कार्य करना चाहिए। 

 

देश की अदालतें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करने से कभी नहीं हिचकिचाती : जस्टिस सूर्य कांत
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि समय आ गया है कि दुनिया और उसके नागरिक त्वरित और प्रभावी तरीके से एक स्थायी समुदाय के निर्माण की दिशा में अपने प्रयासों को आगे बढ़ाएं। भारतीय अदालतें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करने से कभी नहीं हिचकिचाती हैं। वहीं भारत के सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस बी. आर. गवई ने कहा कि हमें यह ग्रह अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं मिला है, बल्कि हमनें इसे अपने बच्चों से उधार लिया है। केवल तभी हम ऊर्जा संसाधनों के उपयोग में अधिक विवेकपूर्ण होंगेे। इस मौके पर यू.एन. के प्रतिनिधि शाओमी शार्प और चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के चांसलर सतनाम सिंह संधू ने भी पर्यावरण संरक्षण पर अपने विचार साझा किए।

 

संधू ने कहा कि यह एक वैश्विक मुद्दा है और इसके मद्देनजर चर्चा तथा भविष्य के संभावित परिणामों के लिए एक अनोखा मंच है, जिसने हजारों विद्यार्थियों सहित इस कार्यक्रम से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को अतिरिक्त ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि इस कॉन्फ्रैंस के दौरान वैश्विक जजों, पर्यावरण विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों के साथ हुई विचार-चर्चा और परिणामों के आधार पर चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी एक विस्तृत रिपोर्ट व रोडमैप तैयार करके भारत सरकार को पेश करेगी।

 

 

आज इंटरनैशन कांफ्रैंस में शामिल होंगे केंद्रीय मंत्री भूपिंद्र यादव
 8 मई को इंटरनैशनल कॉन्फ्रैंस के समापन समारोह के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपिंदर यादव चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी कैंपस में बतौर मुख्यातिथि शिरकत करेंगे।  


सबसे ज्यादा पढ़े गए

News Editor

Ajay Chandigarh

Recommended News

Related News