AGR पर SC का बड़ा फैसला, टैलीकॉम कंपनियों को 10 साल में करनी होगी अदायगी
punjabkesari.in Tuesday, Sep 01, 2020 - 02:47 PM (IST)
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आज टैलीकॉम कंपनियों की एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की बकाया रकम पर अपना फैसला सुनाते हुए टैलीकॉम कंपनियों को बड़ी राहत दी है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने AGR की बकाया रकम 10 साल में चुकाने की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में टैलीकॉम कंपनियों से कहा है कि वह AGR के कुल बकाया रकम का 10 फीसदी अभी पेमेंट करें और बाकी रकम अगले 10 साल में करें। कोर्ट के फैसले के बाद से एयरटेल के शेयर में बढ़त देखी गई। एयरटेल का शेयर 4.5 फीसदी चढ़ा जबकि आईडिया वोडाफोन के शेयर में 10 फीसदी गिरावट देखी गई।
इंटरेस्ट के साथ देनी पड़ सकती है पेनाल्टी
टैलीकॉम कंपनियों को AGR की बकाया रकम चुकाने का हलफनामा जमा करना होगा। अगर कंपनियां इन 10 साल के दौरान पेमेंट पर डिफॉल्ट करती हैं तो इंटरेस्ट और पेनाल्टी देनी होगी। AGR की बकाया रकम पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना पहला फैसला 24 अक्टूबर 2019 को अपना पहला फैसला सुनाया था। इसके बाद वोडाफोन आइडिया ने खुलकर कहा था कि अगर उसे बेलआउट नहीं किया गया तो उसे भारत में अपना कामकाज बंद करना होगा।
गौरतलब है कि जस्टिस मिश्रा 2 सितंबर यानी बुधवार को ही रिटायर हो रहे हैं। कोर्ट ने कहा था कि यह फैसला तीन आधार पर होगा। पहला, टैलीकॉम कंपनियों को एजीआर बकाया चुकाने के लिए टुकड़ों-टुकड़ों में एजीआर बकाया चुकाने की मोहलत दी जाए या नहीं, दूसरा-जो कंपनियां इंसाल्वेंसी प्रक्रिया का सामना कर रही हैं उनके बकाए को कैसे वसूला जाए और तीसरा-क्या ऐसी कंपनियों द्वारा अपने स्पेक्ट्रम को बेचना वैध है।
15 साल का समय मांगा था समय
वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल ने एजीआर बकाया चुकाने के लिए 15 साल का समय मांगा था। अभी तक 15 टैलीकॉम कंपनियों ने सिर्फ 30,254 करोड़ रुपए चुकाए हैं, जबकि कुल बकाया 1.69 लाख करोड़ रुपए का है।
क्या होता है AGR
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टैलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है। इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है।
असल में दूरसंचार विभाग कहता है कि AGR की गणना किसी टैलीकॉम कंपनी को होने वाले संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट इंट्रेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टैलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल हो।
दूसरी तरफ, टैलीकॉम कंपनियों का कहना था कि AGR की गणना सिर्फ टैलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए लेकिन पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने टैलीकॉम कंपनियों के खिलाफ फैसला दिया था और यह कहा था कि वे तत्काल एजीआर का बकाया चुकाएं। करीब 15 टैलीकॉम कंपनियों का कुल बकाया 1.69 लाख करोड़ रुपए के आसपास है।